राष्ट्रीय बालिका दिवस

आसमां में खुद-ब-खुद जाती रही हैं बेटियाँ।

पढ़ती रही हैं बेटियाँ, बढ़ती रही हैं बेटियाँ।


पूजी गयी नवरात्रि में घर-घर में बन देवियाँ,

फिर भी प्रथा कुचक्र में फँसती रही हैं बेटियाँ।


दान कन्या से बड़ा जब दान कोई भी नहीं,

क्यों दहेज की आग में जलती रही हैं बेटियाँ।


घरों में भी रहा है दो दृष्टि बेटा-बेटियों में,

आँसुओं की धार में बहती रही हैं बेटियाँ।


हर सितम हर दर्द रंज-ओ-ग़म को झेलकर,

जिस्म के सौदागरों में बिकती रही हैं बेटियाँ।


रचयिता
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश',
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, 
विकास खण्ड-लक्ष्मीपुर, 
जनपद-महराजगंज।

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