007/2025, बाल कहानी - 24 जनवरी

बाल कहानी - जाड़े का दिन 
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जाड़े का दिन था। सुमन सुबह कार धुलवाने वाशिंग सेन्टर गयी। कार वाशिंग के लिए देकर वह कुर्सी पर बैठ गयी, तभी सामने से एक आठ साल का बच्चा आता दिखाई दिया। वह कन्धे पर कबाड़ की बोरी लादकर ला रहा था। इतनी ठण्ड में वह सिर्फ हाफ पैंट और बनियान पहने हुए था। उसके पैर में चप्पल भी नहीं थी। 
सुमन को देखकर बड़ा अचरज हुआ। उसने बच्चे को बुलाकर पूछा-, "क्या तुमको ठण्ड नहीं लग रही है? तुम्हारे पास कपड़े और चप्पल नहीं है क्या?"
 बच्चे ने थोड़ा सा झेंपकर उत्तर दिया-, "नहीं, दीदी! मेरे पास पहनने को कपड़े नहीं है और न ही चप्पल है। हम बहुत गरीब हैं। हम पाँच भाई-बहन हैं। मेरे पिताजी की तबियत बहुत खराब रहती है। इस कबाड़ को बेचकर जो पैसा आयेगा, हम फिर उससे खाना खायेंगे।"
सुमन को उस बच्चे पर बहुत तरस आया। सुमन ने पूछा-, "तुम्हारा नाम क्या है?"
"छोटू।" बच्चे ने जवाब दिया।
सुमन ने पूछा-, "अगर मैं तुमको चप्पल दिलाऊँ तो तुम पहनोगे?"
बच्चे ने खुशी से जवाब दिया, "हाँ, दीदी! जरूर पहनेंगे।" इतनी देर में उसकी बड़ी बहन वहाँ से आती दिखाई दी।
 "अरे! छोटू तुम अभी तक यहीं हो?" बहन ने पूछा।
 "हाँ, मीनू! दीदी मुझे चप्पल दिलायेंगी" छोटू ने जवाब दिया।
"अच्छा!" मीनू खुशी से बोली।
तभी सुमन की निगाह लड़की के पैरों पर गयी। उसके पास भी चप्पल नहीं थी।
सुमन ने कहा-, "चलो, मैं तुम दोनों को चप्पल दिला दूँ।"
"छोटू! तुम्हारा घर कहाँ है?" सुमन ने पूछा।
"यहीं पास में हमारी झोपडी है।"
"चलो, पहले हम तुम्हारे घर चलें।" सुमन ने कहा।
"चलिए, दीदी!" बच्चे खुशी से बोले।
थोड़ी ही दूर पर बच्चों की झोपडी थी, जिस पर तिरपाल पड़ा हुआ था। छोटू ने अपने माता-पिता से सुमन को मिलवाया। "दीदी हमारी मदद करने आयी हैं।" छोटू ने अपनी माँ से कहा।
सुमन गौर से झोपडी को देख रही थी। यहाँ गरीबी के अलावा कुछ भी नहीं था। इस परिवार में पाँच सदस्य थे, माता-पिता और पाँच बच्चे। उनके पास न खाने को कुछ ढँग का था और न ही पहनने को। ये सब देखकर सुमन की आँखें नम हो गयीं। सुमन ने माता जी से कहा-, "मैं आप सब की कुछ मदद करना चाहती हूँ।"
"धन्यवाद, बहनजी! ईश्वर आपको हमेशा खुश रखे। "माताजी भावुक होकर बोली।" क्या आपने बच्चों का नाम स्कूल में लिखवाया हैं?" सुमन ने पूछा।
"नहीं, बहनजी! बच्चे जब काम करते हैं, तभी घर चलता है, इसलिए बच्चों का नाम स्कूल में नहीं लिखवाया।" माताजी ने जवाब दिया।
सुमन ने छोटू की माँ को समझाया-, "बच्चों का नामाँकन स्कूल में अवश्य करा दें। वहाँ नि:शुल्क शिक्षा और किताबें मिलेंगी। ड्रेस, जूता-मोज़ा और कॉपी का पैसा खाते में आ जायेगा। दिन में ताजा और गर्मा-गर्म भोजन भी बच्चों को मिलेगा। फल, दूध और पूरक-आहार भी मिलेगा। बच्चे जब पढ़ेगें, तभी ये कुछ बन पायेंगे, तभी आपकी गरीबी दूर होगी।" उनके अभिभावक को बात समझ में आ गयी।
सुमन ने पास के ही एक प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का नामाँकन करा दिया। उनके लिए कपड़े और चप्पल खरीद कर ले आयी और महीने भर का राशन भी रख दिया। माता-पिता ने सुमन का बहुत आभार व्यक्त किया और बहुत ढेर सारी दुआएँ भी दी। बच्चों के चेहरे भी खुशी से खिल उठे।

#संस्कार_सन्देश-
हमें हमेशा लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

कहानीकार-
#रूखसार_परवीन (स०अ०)
संविलियन विद्यालय गजपतिपुर 
बहराइच (उ०प्र०)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया 
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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