005/2025, बाल कहानी- 22 जनवरी
बाल कहानी - अपनों का साथ
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मैं रोज सुबह सात बजे अपने घर से स्कूल जाने के लिए स्टेशन के लिए निकलती थी। आज भी स्कूल के लिए अपने घर की गली से जैसे ही निकली, सामने एक ई-रिक्शा खड़ा था। मैंने स्टेशन बोला और बैठ गयी। उस रिक्शे में पहले ही एक महिला और एक बच्चा बैठे थे l मैंने उन्हें सवारी ही समझा l इसी तरह ई-रिक्शा वाले भैया मेरे लिए रोज इसी समय पर रिक्शा लाकर खड़ा कर देते थे। शायद वह जान गए थे कि मैं रोज़ इस समय पर निकालती हूँ। मैं भी रोज चुपचाप रिक्शा में बैठ जाती और चालक रिक्शा आगे बढ़ा देता। मैं मन ही मन सोचती कि यह महिला भी कहीं काम करती होगी और अपने बच्चों को साथ में ले जाती होगी।
आज फिर सुबह निकलते ही रिक्शे में बैठी, तो मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उस महिला से पूछ लिया कि-, "तुम भी कहीं काम करती हो क्या?" मेरी बात सुनकर उस महिला ने जवाब दिया कि-, "नहीं दीदी! ये मेरा रिक्शा है और ये मेरे पति और बच्चा है। सारा दिन ये रिक्शा चलाते हैं व्यस्त रहते हैं और हम दोनों कहीं घूम नहीं पाते है तो सुबह सबसे पहले हम दोनों को ये रिक्शा में बैठाकर स्टेशन तक ले जाते हैं।" महिला बहुत खुश मालूम पड़ रही थी। उसके चेहरे की मुस्कान देखकर मुझे अहसास हुआ कि खुश रहने के लिए पैसों से ज्यादा अपनों के प्यार और साथ की बहुत जरूरत होती है।
#संस्कार_सन्देश-
खुश रहने के लिए पैसों से ज्यादा अपनों के प्यार और साथ की जरूरत है।
कहानीकार-
#भावना_वर्मा (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय शंकरगढ़,
ब्लाॅक- बंगरा, झाँसी (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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