स्वामी विवेकानंद

विवेक का मार्ग ही

दिखाये राह सही, 

विचार तो जाए

चहुँदिशि ओर, 

कभी इधर, कभी उधर

समझ न आए राह की ओर। 


है जहाँ विवेक

है वहीं आनंद, 

तभी तो बनता है

 विवेकानंद, 

बने नरेंद्र खुद के स्वामी

और कहलाये स्वामी विवेकानंद। 


निरंतर कर्म में लगे रहना ही

उनका उद्देश्य है, 

जब तक हो न जाए प्राप्त लक्ष्य

नहीं गति में हो विराम, 

बढ़ते रहो निडरता से

न हो कहीं कोई अल्पविराम। 


युवाओं के प्रेरणा स्रोत

जीवन का दर्शन हैं, 

ऐसे परम तेजस्वी

स्वामी विवेकानंद को

कोटि-कोटि नमन

कोटि-कोटि नमन।।


रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।

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