002/2025, बाल कहानी - 18 जनवरी


बाल कहानी - परिवर्तन 
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सोनू अपने सुन्दर बगीचे की साफ-सफाई कर रहा था। सोनू के अभिभावक सोनू के कार्य से बहुत खुश थे। सोनू सुबह उठकर नहा-धोकर तैयार होकर बाग-बगीचे की साफ-सफाई कर और पानी देकर नाश्ता करके स्कूल चला जाता। वहाँ खूब मन लगाकर पढ़ाई करता। स्कूल से आने के बाद थोड़ी देर भाई बहनों के साथ खेलता, उसके बाद सभी को घर पर बैठाकर पढ़ाता और खुद भी पढ़ता। सोनू कक्षा सात का विद्यार्थी था। उसका छोटा भाई कक्षा पाँच का विद्यार्थी और बहन कक्षा तीन की विद्यार्थी थी।
सोनू लगभग ग्यारह साल का था, पर उसका कार्य और जिम्मेदारी बहुत बड़ी थी। उसकी सबसे अच्छा आदत यह थी कि वह हर कार्य खुशी-खुशी करता था। उसकी ये आदत देखकर सभी बहुत खुश थे।
एक दिन की बात है। प्रतिदिन की तरह सोनू आज भी अपने सभी कार्य करने के बाद स्कूल जा रहा था, तभी सोनू की माँ ने आवाज लगाई-, "बेटा! आज तुम स्कूल न जाओ। तुम्हारे पिताजी ने शाम को सबको दावत दी है। आज तुम्हारा जन्म-दिन है। खूब सारा आशीर्वाद! हमें आज बहुत धूम-धाम से तुम्हारा जन्म-दिन मनाना है। अगर तुम स्कूल चले गये तो मजा नहीं आयेगा। अभी बहुत सारी तैयारी करनी है। पूरा घर सजाना है। तुम्हारे पिताजी तुम्हारे स्कूल जाकर सभी को तुम्हारे जन्म-दिन के अवसर पर दावत का न्योता देने जायेंगे और तुम्हारे स्कूल आज न जाने की वजह भी बता आयेंगे। तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।"
सोनू ने बड़े प्यार से माँ से कहा-, "माँ! हमें अपने जन्म-दिन के अवसर पर तो जरूर स्कूल जाना चाहिए। वहाँ सभी शिक्षकों का आशीर्वाद मिलेगा। जब पिताजी स्कूल आयेंगे तो उन्हीं के साथ चला आऊँगा। इससे स्कूल में मैं अनुपस्थित नहीं होऊँगा और पढ़ाई भी कर लूँगा। दोस्तों की शुभकामनाएँ और शिक्षकों का आशीर्वाद भी मिलेगा।"
माँ सोनू के जवाब से बहुत खुश हुई और इस तरह सोनू को स्कूल जाने की इजाजत मिल गई। वह बोली-, "ठीक है बेटा! तू स्कूल जा। तेरे पिताजी तेरे लिए उपहार लेने गये हैं।"
सोनू खुशी-खुशी स्कूल जा पहुँचा। कुछ देर बाद सोनू पिताजी के साथ घर आ गया। सोनू के हाथ में बहुत सारे उपहार थे। सोनू बहुत खुश था। सोनू घर आकर तैयार हुआ। सभी ने खूब धूम-धाम से सोनू का जन्म-दिन मनाया। सोनू को सभी ने हर तरह के उपहार दिए। सोनू के पिताजी ने सोनू को मोबाइल दिया। सोनू बोला-, "पिताजी! ये तो बहुत अच्छा है, पर मैं इसका क्या करूँगा?" 
"बेटा! तुम इससे पढ़ाई करना। इसमें मैंने नेट भी डलवा दिया है। तुमऑनलाइन यूट्यूब से पढ़ भी सकते हो।" 
"जी पिताजी! तब तो मैं इसे अपने पास ही रखूँगा।" 
"हाँ बेटा! ये अब तुम्हारा है। इसे तुम अपने पास ही रखो।" पिताजी बोले।
कुछ दिन बाद सोनू ने बगीचे में पानी देना छोड़ दिया। दोस्तों के साथ खेलना, भाई-बहन को पढ़ाना, समय पर उठना, स्कूल जाना, अच्छे से बोलना, पढ़ना सब छोड़ दिया। यहाँ तक कि माँ-पिताजी से बात करना भी छोड़ दिया। सोनू दिन-रात मोबाइल पर गेम खेलने लगा। सोनू के अभिभावक बहुत परेशान हुए। सोनू को डाँटते हुए मोबाइल छीनकर तोड़ दिया। सोनू को मोबाइल का सदमा लगा। उसने मोबाइल के गम में खाना-पीना छोड़ दिया और बेहोश होकर गिर पड़ा। सोनू की जब आँख खुली तो वह हॉस्पिटल में भर्ती था। आँख खुलते ही सोनू ने मोबाइल माँगा। सोनू की हरकत देखकर अभिभावक खूब रोये। अपने माता-पिता को रोता देख सोनू भी खूब रोया। वह रोते हुए बोला-, "पिताजी! आपने ही तो मोबाइल लाकर मेरा जीवन बदल दिया। मुझमें परिवर्तन ला दिया। अब मुझे मोबाइल की आदत पड़ गई तो आप लोग रो रहे हो? मुझे मोबाइल के बिना कुछ अच्छा नहीं लग रहा। मैं क्या करूँ? आप लोग ही बताएँ!"
माँ ने सोनू को गले लगाते हुए प्यार से समझाया-, "बेटा! तुम परेशान न हो, सब ठीक हो जायेगा। मेरा बेटा पहले से भी और अच्छा हो जायेगा। हम सब तुम्हारे साथ हैं।" अभिभावक, भाई-बहनों, शिक्षक के प्यार से, दोस्तों के साथ और दुलार से सोनू ठीक हो गया। उसने मोबाइल से तौबा की और फिर से खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगा। सभी ने सोनू का खूब साथ देकर उसे आशीर्वाद दिया।

#संस्कार_सन्देश - 
अच्छी आदतें ही हमें अच्छा बना सकती हैं। अत: हमें इन्हें जरूर अपनाना चाहिए। 

कहानीकार-
#शमा_परवीन 
बहराइच (उत्तर प्रदेश)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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