004/2025, बाल कहानी- 21 जनवरी
बाल कहानी - ऐसा क्यों?
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दीवाली की रात थी। सभी लोग अपने-अपने घरों में पूजा करने में तथा पकवान बनाने और खाने में व्यस्त और मस्त थे, परन्तु पड़ोस के मकान में बिल्कुल सन्नाटा था। कभी-कभार किसी बच्चे की रोने की आवाज आती थी, फिर आ जाता था सन्नाटा।
रवि ने पड़ोस के घर की इस परिस्थिति का जब पड़ताल करने का प्रयास किया, तो पाया कि घर में बच्चे की माँ बीमार पड़ी हुई है तथा बच्चे के पिता अपने दोस्तों के साथ दीवाली का उत्सव मनाने गये हैं। उन्हें न तो बच्चे की फिक्र है और न ही पत्नी की।
रात के लगभग दो बजे का समय था। चारों तरफ लोगों की आवाजें आ रही थी। शोर सुनकर अचानक रवि की आँख खुली तो बाहर झाँककर देखा तो बहुत लोग इकट्ठा थे। उसने पास जाकर देखा तो उसका वही पड़ोसी था, जो नशे में धुत था तथा उसके कपड़े फटे-चिथड़े थे। ऐसे लग रहा था, जैसे कोई मार-पीटकर लहूलुहान करके फेंक गया है। पड़ोसियों ने पुलिस को सूचना दी। पुलिस आयी। सबसे पहले उसे जीवन रक्षा के लिए अस्पताल ले गयी। उसकी हालत कुछ सुधार हुआ, तब पुलिस के एक सिपाही ने उससे पूछा-, "तुम्हें ये चोटें कैसे आयी हैं?" वह बोला-, "मेरी यह हालत मेरे दोस्तों ने की है, क्योंकि आज मेरे पास उन पर खर्च करने के लिए उतने पैसे न थे, जितना कि वे चाहते थे।" सिपाही बोला-, "अरे! ऐसे लोगों को तुम दोस्त कहते हो, जिनकी दोस्ती मौज-मस्ती मनोरंजन के लिए होती है।" वह बोला-, "मेरी पत्नी मुझसे यही बातें कहती रहती थी, पर न जाने क्यों मैं उसे समझने की कोशिश ही नहीं करता था, पर अब मैं समझ चुका हूँ कि हमें अपने परिवार के लोगों की बातों पर ध्यान जरूर देना चाहिए, नहीं तो इसी तरह की अनचाही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।" सिपाही तेज साँस भरते हुए बोला-, "चलो! खैर, आपको समझ तो आ गयी, आगे से मित्रों का चुनाव समझ-बूझकर करेंगे।"
एक सप्ताह के इलाज के बाद पड़ोसी ठीक होकर घर वापस आ गये और चैन से रहने लगा। यह सब देखकर रवि बहुत प्रसन्न हुआ कि उसके पड़ोस में रौनक, खुशहाली तथा समझदारी है। तीनों एक साथ हैं।
#संस्कार_सन्देश -
मित्र का चुनाव समझ-बूझकर करना चाहिए। परिवार के लोगों की बातों को नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए।
कहानीकार-
#सरिता_तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट स्कूल कन्दैला
मसौधा, अयोध्या (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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