239/2024, बाल कहानी - 24 दिसम्बर


बाल कहानी- नैतिक गुण
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रीना और मीना दोनों सगी बहनें थीं। उनके परिवार में उनके माता-पिता छोटा भाई मोनू और दादा-दादी थे। रीना और मीना की दादी बहुत ही उदार महिला थीं। वे बच्चों को प्रतिदिन महापुरुषों की कहानियाँ भी सुनातीं थीं।
रीना दादी की कहानियों को बड़े ध्यान से सुनती थी और उन्हें आत्मसात करती थी। वही मीना को दादी की कहानियाँ बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगती थी। वह कोई न कोई बहाना बना करके वहाँ से चली जाती थी। 
समय बीतता गया। जहाँ रीना का स्वभाव बहुत ही उदार होता गया, वहीं मीना के व्यवहार में ईर्ष्या-द्वेष जैसे गुण भरे हुए थे। वह अक्सर अपने सहेलियों से बात-बात में झगड़ा करती थी और झूठ भी बोलती थी। 
एक बार उनके विद्यालय में वार्षिक खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें सभी के माता-पिता को भी आमन्त्रित किया गया। रीना और मीना ने भी खेलों में प्रतिभाग किया। दौड़ प्रतियोगिता हो रही थी। रीना और मीना तेजी से आगे बढ़ रही थी, पर उनकी एक सहेली रितु उनसे आगे निकल गई थी। सभी अभिभावक तालियाँ बजाकर बच्चों का हौंसला बढ़ा रहे थे। तभी मौका पाकर मीना ने रितु को धक्का दे दिया, जिससे वह गिर गयी और पीछे रह गई। प्रतियोगिता में वह पहले स्थान की जगह तीसरे स्थान पर आयी। वहीं रीना प्रथम और मीना द्वितीय स्थान पर रहीं।
रीना को यह बात अच्छी नहीं लग रही थी। जब पुरस्कार वितरण का समय आया तो स्टेज पर रीना को प्रथम पुरस्कार देने के लिए बुलाया गया, जिस पर रीना ने ईमानदारी के साथ अपना पुरस्कार रितु को दे दिया। उसने सभी को बताया कि, "इस पुरस्कार की असली हकदार रितु है।" 
मीना को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भी रितु से अपने बुरे बर्ताव के लिए क्षमा माँगी और भविष्य में इस तरह का व्यवहार कभी किसी के साथ न करने की कसम ली। वहाँ उपस्थित सभी अध्यापकों और अभिभावकों ने तालियाँ बजाकर बच्चों की प्रशंसा की।

#संस्कार_सन्देश -
हमें अपने व्यवहार में नैतिक गुणों को अपनाना चाहिए। साथ ही साथ किसी के साथ छल कपट नहीं करना चाहिए।

कहानीकार-
#मृदुला_वर्मा (स०अ०)
प्रा० वि० अमरौधा प्रथम
अमरौधा (कानपुर देहात)

कहानी वाचन- 
#नीलम_भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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