233/2024, बाल कहानी -17 दिसम्बर


बाल कहानी - पॉलिथीन का कहर
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मुनिया, राजू की बुआ की लड़की थी। राजू का घर लौटने के बाद एक ही काम था। दादी से कहानी के लिए आग्रह करना और दादी हमेशा की तरह कहती कि, "पहले भोजन, फिर विश्राम और उसके बाद होमवर्क और फिर रात में कहानी।" तो इस बार जैसे ही दादी ने कहा कि, "पहले भोजन तो कर लो।" राजू और मुनिया दोनों साथ-साथ चिल्लाए, "हाँ दादी! पर इस बार हमें पता है कि आज आप कौन सी कहानी सुनाने वाली है?" दादी मुस्कुरायी। मुनिया बोली, "हाँ दादी! प्यासे पहाड़ की कहानी। सुनाते समय आप ही ने तो कहा था कि अगली कहानी पॉलिथीन पर सुनायेंगी।" दादी ने एक क्षण अपना चश्मा ठीक किया और सधे स्वर में बोली, "हाँ! पर समय वही रात का ही रहेगा।" 
"ठीक है दादी!" रात होते ही दोनों दादी के पास आ धमके। दादी ने गला साफ किया और कहानी आरम्भ की। बात बहुत पुरानी नहीं है। रामू की गौशाला की चर्चा दूर-दूर तक होती थी। गौशाला में सभी गायों की देख-भाल बहुत ही गम्भीरता से होती थी। सभी गायें स्वस्थ थी। उनके चारे व सफाई का प्रबन्ध भी बहुत अच्छी तरह से होता था। रामू ने मोहन और सोहन नाम के व्यक्तियों को गायों को बाहर दहलाने के लिए नियुक्त किया था। 
एक दिन गायें रोज की तरह बाहर निकली। उन में रंभा और नंदा थोड़ा अलग होकर चरने लगी। इतने में उनकी निगाहें बहुत सुन्दर सी पॉलिथीन पर पड़ी, जिसको किसी ने कुछ मिठाई के साथ फेंक दिया था। नंदा, रंभा जब पास पहुँची तो बहुत सारी पॉलीथिन खाने के समान के साथ बिखरी पड़ी थीं। भोली गायें खाने की वस्तुओं के साथ-साथ उन्हें भी निगल गयीं। तब तक मोहन सोहन ने सारी गायों को इकट्ठा किया और गौशाला की ओर ले चला। इसी बीच मोहन को ऐसा प्रतीत हुआ कि रंभा तथा नंदा थोड़ा धीरे व लँगड़ा कर चल रही है। उसे लगा, शायद इन्हें चोट लग गयी है। धीरे-धीरे वह सब गौशाला पहुँच गये, पर गौशाला पहुँचकर भी नंदा तथा रंभा ने चारे को हाथ नहीं लगाया और लड़खड़ा कर बैठ गयी। रामू ने जब उन्हें देखा तो उन्हें प्यार से सहलाया। रंभा, नंदा ने अपने मालिक के हाथ पर अपना सिर रख दिया और उदास नेत्रों से देखने लगी। रामू से रहा न गया। उसने पास के पशु चिकित्सक से सम्पर्क किया। इसी बीच नंदा और रंभा बुरी तरह छटपटाने लगी।" 
"क्यों दादी, क्यों वह दोनों छटपटाने क्यों लगी?" "अरे राजू! दादी ने प्यार से कहा, "पॉलिथीन सीधे पाचन-तन्त्र को बाधित कर देता है। खाद्य वस्तुएँ पचती नहीं है व पॉलिथीन जाकर आँतों में फँस जाता है। इससे जानवरों को बहुत पीड़ा होती है।" "बेचारी नंदा और रंभा!" मुनिया ने कहा। तब तक डॉक्टर आये। लक्षण देखकर उन्हें साफ पता चल गया कि गायों ने प्लास्टिक निगल लिया है। उन्होंने आनन फानन में रियोमिनोटॉमीकी व्यवस्था की अर्थात गायों के पेट से प्लास्टिक निकालने के लिए ऑपरेशन करना जिसे कहते हैं। रामू अश्रुपूरित नेत्रों से कभी अपनी गायों को निहारते तो कभी डॉक्टर को। इधर मोहन, सोहन अपने आप को कोस रहे थे कि उनका ध्यान भटकने के कारण ही नंदा और रंभा की यह हालत हुई। तब तक मुनिया से रहा न गया। उसने कहा कि, "गलती तो पॉलिथीन के अन्दर खाद्यान्न वस्तुओं के कारण है। कोई भी समारोह हो, लोग खाना खाकर प्लास्टिक की प्लेटें ऐसे ही छोड़ देते हैं, जिसमें खाने के लालच में भोले जानवर उन्हें निगल लेते हैं। यही हाल घर वालों का है, जो बचा कुछ खाना, प्लास्टिक की पन्नी में डालकर यहाँ-वहाँ रख देते हैं।" दादी ने गहरी साँस ली कि, "हाँ, यह तो है।" और कहानी आगे बढ़ायी। "इधर पशु चिकित्सक ने रियोमिनोटॉमी की प्रक्रिया पूरी की और रंभा और नंदा का जीवन सुरक्षित किया।" वाह दादी! नन्हे राजू ने ताली बजायी। रंभा और नंदा बच गयी। मुनिया भी कहानी के सुखद अन्त से बहुत प्रसन्न हुई। दोनों बच्चे सोने के लिए जाने लगे, तब तक मुनिया को एक विचार आया। वह वापस लौटी और उसने नानी से प्रश्न किया, "अगर प्लास्टिक का कूड़ा इधर-उधर पड़ा ही न रहे, तो चलो राजू! आज से हम प्रतिज्ञा करते हैं कि घर के लिए कोई भी सामान लाने के लिए पॉलिथीन का प्रयोग नहीं करेंगे।" नानी मुनिया चहकी, "अगर हम इधर-उधर पॉलिथीन पड़ी देखेंगे तो सेल्फलेस सर्विस करके उसे उपयुक्त जगह पर जला देंगे या फिर उसे रीसायकल करेंगे। अरे वाह मुनिया! हम बेकार पड़ी पॉलिथीन से दादी के लिए आसनी बनायेंगे और पूजा घर के लिए सुन्दर फूल भी। अरे बच्चों!" दादी ने प्यार से राजू और मुनिया को लिपटते हुए कहा, "गाँव में कौशल विकास एवं उद्यमिता केन्द्र है। वहाँ पर बेकार पड़ी पॉलिथीन से बहुत सुन्दर-सुन्दर वस्तुएँ बनायी जाती हैं। हम इन्हें वहाँ भी दे सकते हैं। हम स्कूल में 'पॉलिथीन हटाओ-पर्यावरण बचाओ' अभियान चला देंगे।" "अरे वाह! हाँ दादी! आपने ही तो हमें अरुणा आसफ अली की कहानी सुनायी थी, जिसमें नन्ही अरुणा ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान चलाया था।" "ठीक है बच्चों! अब बहुत रात्रि हो गयी है। अब जाकर सो जाओ! सुबह स्कूल भी तो जाना है जी दादी!" "ठीक है दादी।" इतना कहकर दोनों सोने चले गये और दादी भी सो गयी।

#संस्कार_सन्देश -
प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करे और पर्यावरण को सुरक्षित रखें।

कहानीकार-
#डॉ० सीमा_द्विवेदी (स०अ०) 
कम्पोजिट स्कूल कमरौली
जगदीशपुर (अमेठी)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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