228/2024, बाल कहानी -11 दिसम्बर
बाल कहानी - माँ की ममता
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एक गाँव में रमन नाम का एक किसान था। वह खेती-बाड़ी के साथ-साथ गायों और भैंसों को भी पालता था। वह अपनी गायों और भैंसों से दूध निकाल कर रोज शहर बेचने ले जाता था। गाँव से शहर की दूरी बहुत ज्यादा नहीं थी, लेकिन शहर जाने का रास्ता छोटे जंगल से होकर गुजरता था, इसलिए रास्ता बहुत सुनसान रहता था। रास्ते के बीचों-बीच एक पुरानी बन्द पड़ी हुई मील थी। मील इतनी पुरानी थी कि उसकी इमारतें खण्डहर में बदल चुकी थीं। रमन रोज दूध लेकर इसी रास्ते से शहर जाता था।
एक दिन रमन जब दूध लेकर शहर जा रहा था। उसे मील के अन्दर से कुत्ते रोने की आवाज आ रही थी। रमन ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और शहर चला गया।
दूसरे दिन जब रमन दूध लेकर शहर जा रहा था, तब भी उसे कुत्ते की भौंकने की आवाज आ रही थी। रमन ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गया। ऐसे ही चार से पाँच दिन बीत गये। रमन ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। छठवें दिन जब रमन शहर जा रहा था तो उस दिन भी कुत्ते के रोने की आवाज आ रही थी। रमन को कुछ सही नहीं लगा। रमन मील की दीवार को फाँदकर अन्दर गया। भीतर का नजारा देखकर वह करुणा से भर गया। भीतर एक कुत्तिया थी, जो इतने दिन से भूख-प्यास से तड़प रही थी। मील की दीवार ऊँची होने के कारण वह बाहर निकल नहीं पा रही थी। भूख और प्यास से इतनी टूट चुकी थी कि अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थी। बस, एक जगह बैठी रो रही थी। रमन झट से अपने दूध वाले डब्बे में से दूध ले जाकर उसको पिलाया। कुत्तिया इतनी डरी हुई थी कि वह रमन को छूने भी नहीं दे रही थी। धीरे-धीरे सहलाने पर जब वह थोड़ी सहज हुई तो रमन उसे अपने हाथों से उठाने का प्रयास किया। रमन ने देखा कि वह अपने नीचे अपने चार बच्चों को भी छुपा कर बैठी है, जिसमें से उसके तीन बच्चे मर चुके थे। एक ही बच्चा जीवित था। रमन कुत्तिया को उठाने का प्रयास कर रहा था लेकिन कुत्तिया अपने बच्चों को बिल्कुल छोड़ता नहीं चाह रही थी। रमन कुत्तिया माँ की ममता को देखकर उसका हृदय द्रवित हो उठा। रमन अब उस माँ को हर हाल में बचना चाहता था। रमन उसके जीवित बच्चे और उस कुत्तिया माँ को बचाने के लिए अपने घर ले जाना चाहता था। रमन ने उसके जीवित बच्चों को अपने हाथों में उठा लिया और कुत्तिया को ले जाने का प्रयास करने लगा। तभी उसने देखा कि जो कुत्तिया अपने मरे हुए बच्चों को भी अपने मुँह में भरकर बारी-बारी से रमन के पैरों के पास लाकर रख रही थी। मानो कह रही थी कि मेरे इन बच्चों को भी साथ ले चलिए। मैं अपने किसी भी बच्चे को नहीं छोड़ सकती। रमन इस माँ की भावनाओं को देखकर इतना विचलित हुआ। गुस्से से मन ही मन बड़बड़ाने लगा, "कैसे-कैसे लोग हैं, जो इन जानवरों को अपनी शौक के लिए पाल तो लेते हैं। जब उनका मन ऊब जाता है। तब ये बच्चे उन्हें बोझ लगने लगते हैं। लोग इन बच्चों को गुस्से से मारते पीटते हैं या फिर किसी सुनसान जगह पर मरने के लिए छोड़ जाते हैं। बड़े-बड़े घरों में पले-बढ़े यह जानवर अचानक से जब सड़क पर फेंक दिए जाते हैं। ऐसे में यह जानवर खुद को जीवित नहीं रख पाते। आये दिन सड़क दुर्घटना के शिकार और सुनसान जगह पर भूख-प्यास से मारे जाते हैं।" रमन कुत्तिया और उसके जीवित बच्चों को घर ले जाता है। उसके रहने और खाने की व्यवस्था करता है। कुत्तिया रमन के घर रहने तो लगी थी लेकिन उसको देखकर लगता जैसे कि वह अपने तीनों बच्चों के लिए आज भी दु:खी है। कुछ समय बाद रमन जब एक दिन शहर दूध लेकर जा रहा था, तभी उसने देखा की कोई छोटे-छोटे तीन कुत्ते के बच्चों को रास्ते में छोड़ गया है, जो अभी बहुत ही छोटे-छोटे थे । वे बच्चे वहीं पर भूख-प्यास से तड़प रहे थे। रमन से यह देखा न गया। रमन उन बच्चों को बचाने के घर ले जाने लगा। रमन जब कुत्ते के बच्चों को घर ले जा रहा था तो उसके मन में यही चल रहा था कि पता नहीं, वह कुत्तिया इन बच्चों को स्वीकार करेगी या नहीं ? फिर भी रमन उन बच्चों को घर ले गया। रमन उन बच्चों को कुत्तिया के जीवित बच्चे के साथ रखा। कुत्तिया ने उन बच्चों को स्वीकार कर लिया। उन बच्चों को ऐसे दुलार ने लगी, जैसे उसके वह तीनों मरे हुए बच्चे ही हों, जो उस समय दूर हो गये थे। अब जाकर उसे मिले हैं। इतने दिनों से उदास रहने वाली माँ अब उन बच्चों के साथ खुशी से रहने लगी।
संस्कार सन्देश-
अगर सभी के हृदय में सभी जीवों के प्रति करुणा, प्रेम और दया-भाव हो, तो जीव-जन्तु लुप्त होने का कगार पर नहीं पहुँचेंगे।
कहानीकार-
#सुमन_यादव (स०अ०)
प्रा० वि० पूरे शिवरतन सिंह मासाडीह, महसी, बहराइच (उ०प्र०)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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