236/2024, बाल कहानी -20 दिसम्बर


बाल कहानी- सच्ची राह
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"राजू! चलो, आज एक मजेदार खेल खेलते हैं।" मोनू ने राजू से कहा।
"कैसा खेल मोनू? जरा बताओ तो सही, इतनी तेजी में कहाँ दौड़ रहे हो? तुम मुझे भी अपने साथ दौड़ा रहे हो।" राजू ने पूछा।
"ये देखो राजू! मेरे हाथ में ये क्या है?" मोनू ने पूछा।
"ये तो कील है मोनू! भला इससे कौन सा खेल होगा? अरे बताओ तो सही मोनू! तुम सिर्फ ये कील देखकर मुस्कुरा रहे हो! मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है? इन चार किलो से भला कौन सा खेल खेलेंगे?"
"जरा सब्र रखो। बस, सड़क किनारे छुप जाओ और चुपचाप ये कील इधर-उधर देखकर पहिया के नीचे फेंक देना, फिर देखना मजा। तुम भी खूब मेरी तरह मुस्कुराओगे।"
"क्या तुम पागल हो गये हो? किसी की गाड़ी खराब करके कौन सी खुशी मिलेगी? ये तो बड़े शर्म की बात है। स्कूल में टीचर बताती है, हमें हमेशा लोगों की मदद करनी चाहिए और तुम दूसरों को दु:ख देने की बात कर रहे हो।"
"तुम समझ नहीं रहे हो। ये सिर्फ एक खेल नहीं है, ये ढेर सारी कील मुझे पास के गाड़ी बनाने वाले दुकानदार ने दी है। जब कोई गाड़ी खराब होगीतो पास में उसी की दुकान में लोग जायेंगेव इससे उसका भी फायदा होगा और मेरा भी और तुम्हारा भी।"
"मेरा फायदा कैसे मोनू? जरा पूरी बात बताओ! मेरी समझ में नहीं आ रही है तुम्हारी बात.."
"देखो राजू! अगर मैंने एक कील फेंकी और गाड़ी के पहिए के नीचे आ गयी और उसकी गाड़ी खराब हो गयी तो वह गाड़ी ठीक कराने पास की दुकान पर जाएगा। जो भी गाड़ी दुकान पर जायेगी, हम लोगों को भी प्रत्येक गाड़ी खराब करने के दस रुपए मिलेंगे। पर ये काम बहुत सावधानी से करना है। कोई देख न पाये, वरना एक रुपए भी नहीं मिलेंगे और मार अलग से पड़ेगी।"
"अब समझ आई राजू तुम्हें मेरी बात? आओ! अब चलो, काम पर लग जायें। हफ्ते में यही रविवार तो ही मिलता है, जिसमें मैं पैसा कमाता हूँ, बाकी दिन तो स्कूल जाता हूँ।"
"आओ चलो! अब देर न करो। "आखिर तुम इतना क्यूँ सोच रहे हो?" मोनू ने पूछा।
"मोनू! मैं ये सोच रहा हूँ कि तुम्हें सब का डर है, पर ईश्वर का डर नहीं है। तुम्हें उस दु:ख का डर भी नहीं है, जो तुम दूसरों को दोगे। बस! चन्द पैसों के लिए मैं तुम्हारे गलत काम में मदद नहीं करूँगा। मैं जा रहा हूँ और अगर तुम मेरे सच्चे दोस्त हो, तो तुम भी पीछे-पीछे चले आओ, वरना कभी मत आना मेरे पास। मैं समझ लूँगा कि हम तुमसे कभी मिले ही नहीं थे।"
इतना कहकर राजू जाने लगा। मोनू को राजू की बात चुभ सी गयी। उसकी आँखें नम हो गयीं। उसको अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने दिल से तौबा किया और अपने दोस्त राजू के पास दौड़कर जा पहुँचा।

#संस्कार_सन्देश -
हमें अपनी खुशी के लिए किसी को दु:ख नहीं देना चाहिए। कोई देखे या न देखे, ईश्वर सब देखता है।

कहानीकार-
#शमा_परवीन 
बहराइच (उत्तर प्रदेश)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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