225/2024, बाल कहानी - 07 दिसम्बर
बाल कहानी- नौ लड़कियाँ
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रमा कक्षा आठ की छात्रा थी। उसके साथ कक्षा आठ में आठ लड़कियाँ पढ़ती थी। इन नौ सहेलियों में गहरी दोस्ती थी। ये सभी बहुत ही सुन्दर और होनहार थी। एक के तकलीफ होने पर सभी परेशान हो जाती थी। जिस दिन एक लड़की स्कूल नहीं जाती, उस दिन कोई भी लड़की विद्यालय नहीं जाती थी। उनके माता-पिता और शिक्षक उन्हें बहुत समझाते थे, किन्तु वह किसी भी प्रकार से समझना ही नहीं चाहती थीं।
नवम्बर माह नजदीक आ रहा था। विद्यालय में एन० ए० एस० की परीक्षाएँ थीं। सभी विद्यार्थियों को विशेष कर इन इन नौ लडकियों को खासतौर से सूचना दी गयी थी। प्रधानाध्यापक जानते थे कि इनका कोई भरोसा नहीं है। ये जितनी होशियार हैं, उतनी ही नासमझ। उन्हें बार-बार समझाया गया, "देखो बेटों! जिस दिन तुम्हारी परीक्षा है, वह दिनाँक और दिन तुम सबको बार-बार बता दिया गया है। तुम सबको मैं जानता हूँ। एक के साथ सभी जानें कहाँ लटक जाती हों।"
"पेड़ की डाल पर।" रमा ने मुस्कराकर कहा! "क्या?" प्रधानाध्यापक ने पूछा! कुछ नहीं सर! आप बोलिए, हम लोग बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। क्यों लडकियों?" रमा सभी सहेलियों की ओर देखते हुए मुस्करायी। सभी 'हाँ' कहकर हँस पड़ीं।
"तुम नहीं सुधरोगी। एक दिन तुम सभी बहुत पछताओगी। क्योंकि तुम जो भी अच्छा-बुरा, सही और गलत करती हो, एक साथ करती हो।" कहकर प्रधानाध्यापक अपने कक्ष में चले गये।
समय बीतता गया। परीक्षा का दिन नजदीक आ रहा था। प्रधानाध्यापक ने एक दिन पूर्व सभी को और विशेष कर इन नौ लड़कियों को सूचित किया और पुन: समझाया कि, कल एन० ए० एस० की परीक्षा है। तुम सभी होशियार और श्रेष्ठ छात्र-छात्रायें हो, समय और दिन का विशेष ध्यान रखना। कल सभी को जरूर आना है।" सभी बच्चों ने 'हाँ' कह दी।
दूसरे दिन सभी बच्चे समय से स्कूल आये। प्रार्थना स्थल पर नौ लड़कियाँ नहीं दिखाई दे रहीं थीं। प्रधानाध्यापक को आशंका हुई, उन्होंने तुरन्त चपरासी को उन्हें लाने और पता करने को भेजा। करीब आधा घन्टे बाद जब चपरासी आया तो प्रार्थना, पी० टी० होकर परीक्षा शुरु हो चुकी थी। प्रधानाध्यापक बार-बार बाहर की तरफ देख रहे थे कि जिसको लाने के लिए भेजा था, वह अभी तक नहीं आया, तभी चपरासी को आते देख वह बोले, क्यों गोपाल! क्या हुआ? कोई नहीं आया?"
"साहब! हम क्या करें, उनके अभिभावकों को सूचना दे दी है। उन्होंने बताया कि सभी लडकियाँ बहुत पहले समय से विद्यालय के लिए निकल चुकी हैं।"
"निकल चुकी हैं।" प्रधानाध्यापक परेशान से हुए। "हाँ, सर! उन सभी के पिता उन्हें ढूँढने गये हैं, पता नहीं कहाँ मिलेगीं।" गोपाल बोला।
"बहुत ही लापरवाह लड़कियाँ हैं ये। भगवान बचाये ऐसी लड़कियों से। जाने कहाँ घूम-फिर र..।" कहते हुए अचानक प्रधानाध्यापक रूक गये और तुरन्त कक्षा में पहुँचे और बच्चों से बोले, "तुममें से कोई बता सकता है कि ये आते और जाते वक्त कहाँ जाती हैं?" बच्चों में खुसुर-पुसुर हुई। "आप लोग बताइये! उन नौ लड़कियों से ड्रिंक मत! मैं तुम्हारे साथ हूँ। उनकी परीक्षा चूक जायेगी।" तभी एक विजय नाम का बच्चा बोला, "सर! वे सभी आते और जाते वक्त रोज इस पहाड़िया पर घूमती हैं।" "मगर क्यों?" "उस पहाड़ी पर वह रोज करोंदा खाने जाती हैं और मकुइयाँ खाती हैं। बे सब वहीं होंगी। सर! मेरा नाम मत लेना, नहीं तो वे सब मुझे मारेंगी।" "तुम चिन्ता मत करो!" कहते हुए प्रधानाध्यापक गोपाल को लेकर बाहर निकल गये।
कुछ देर बाद वह सभी नौ लड़कियों के साथ आ गये और उन्हें कक्षा में बैठने को कहा। सभी जाकर कक्षा में बैठ गयीं। कोई कुछ न बोला। सब देखते रहे। परीक्षा सम्पन्न हुई। कुछ देर बाद उन सभी के अभिभावक भी वहाँ आ गये। प्रधानाध्यापक ने उन्हें सारी बात बतायी। उन्होंने अपनी-अपनी बच्चियों को बहुत डाँटा। सभी लज्जित हुईं और भविष्य में ऐसा न करने की सपथ ली और वचन दिया।
#संस्कार_सन्देश -
हमें अपने दैनिक कार्य को पहले प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि हमारा भविष्य उसी पर टिका होता है।
कहानीकार-
#जुगल_किशोर_त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
ब्लाॅक- मऊरानीपुर (झाँसी)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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