कृतज्ञता
गीत-लय सरसी छंद
राम जी! दशरथ नंदन।
पधारो शत अभिनंदन।।
बसी अयोध्या-नगरी मन में, मंदिर भव्य विशाल।
प्राण प्रतिष्ठा श्वांस-श्वांस में, माँ कौशिल्या लाल।। राम---
'रा' से जान्यों करे प्रकाशित, 'म' माया पहचान।
तिमिर पलायन त्रिगुण भोर सा, राम बिराजे भान।। राम- - -
भक्ति समर्पण भरत प्रबंधन, लक्ष्मण तापसी वीर।
बैरी हन्ता अनुज शत्रुघ्न, बुद्धि भूमिजा धीर।। राम - - - -
अनुशासन विवेक बजरंगी, हृदय रमाये राम।
सारे दुर्लभ काज सँवारैं, सहज सरल निष्काम।। राम - - -
धर्म सनातन मूल्य सभी दस, स्वतः हुए सामर्थ।
कुपथगामनी कुटिल वृत्तियाँ, मृतप्रायः असमर्थ।। राम - - -
धार लिया 'वसुधैव कुटुम्बकम', महासूक्ति सुखधाम।
पूर्ण हुई 'निरपेक्ष'साधना, सदय पधारे राम।। राम - - - -
दोहा:-(सनातन धर्म के 10 अंग/मूल्य)
ब्रह्मचर्य अस्तेय तप, क्षमा अहिंसा दान।
सत्य शांति संयम दसहु, शौच धर्म हैं जान।।
अस्तेय=चोरी न करना
शौच=तन और अंतःकरण दोनों की शुद्धता
रचयिता
हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।
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