वह अभिमान हमारा
है किसान की शान निराली,
वह अभिमान हमारा।
उसके बल से ही विद्यालय,
उसके बल से मन्त्रालय।
उसके बल सब साधन हैं,
उससे ही जन-जीवन है।।
वह धरती का शेषनाग है,
बोझ उठाता सारा.....
जो मिल जाता है बस उसमें,
रहता है खुशहाल सदा।
धरती से निष्ठा रखता है,
ये धरती का लाल सदा।।
श्रम को नहीं पसीना कहना,
ये गंगा की धारा.......
हर प्राणी का पोषण करता,
ऐसा है वरदानी।
नहीं सताती उसको सर्दी,
गर्मी की मनमानी।।
उसकी श्रद्धा पर चलते हैं,
मन्दिर और गुरुद्वारा......
रचयिता
डॉ0 प्रवीणा दीक्षित,
हिन्दी शिक्षिका,
के.जी.बी.वी. नगर क्षेत्र,
जनपद-कासगंज।
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