बाल व्यथा 2
मैडम ने कहा पालतू जानवर पर निबंध लिखो।
मैम ने सोचा बच्चा जरूर कुत्ता, गाय, भैंस पर लिखकर लाएगा।
क्या पता था बच्चा गजब ढहाएगा।
एक नए जीव छगड़ी(बकरी) से उन्हें मिलवाएगा।
ना सोचा था ऐसा वह वर्णन कर पाएगा।
कहता है मैम मेरा सब कुछ है मेरी छगड़ी।
यकीं न आए तो पूछ लें मेरे गाँव में,
पूछा तो सबने हिला दिया सर, हिली उनकी पगड़ी
मैम का सर चकराया। क्या कहा कुछ न समझ आया।
फिर थोड़ा और निबंध को आगे बढ़ाया।
माँ की तरह करता हूँ इसकी रक्षा।
यही वह जीव है जिसने मेरी पढ़ाई का बजाया बाजा।
पालतू है, सो माँ-बाप ने इसकी सेवा में लगाया।
मेरे पास तो ये है या कहूँ मैं इसके साथ व्यस्त हूँ।
मेरा दोस्त तो और बड़े पशुओं की सेवा में व्यस्त है।
इस पालतू को पालते-पालते हम हो गए फालतू।
मास्टर साहिब आते घर पूछते कहाँ है बेटा?
माँ बताती वह नहीं है घर, ज्यादा पूछने पर काम जरूरी बताती।
रास्ते में मिलते मास्टर साहिब तो दुबक जाता हूँ।
क्या बताऊँ मैं छगड़ी न चराऊँ, तो घर डाँट मैं खाता हूँ।
और सामने आ जाऊँ तो मास्टर साहब स्कूल न आने का कारण पूछते हैं।
कारण छगड़ी को जान फिर मुझे डाँट परोसते हैं।
मास्टर साहब दुखी होकर कहते, क्या छगड़ी पर टीएलएम बनवाऊँ, बेटा तू ही बता कैसे तुझे पढ़ाऊँ।
क्या करूँ मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।
पर मेरे अभिभावक नहीं समझते हैं।
मास्टर जी ने हजार बार शिक्षा का महत्व समझाया है।
मगर मेरे घर वालों ने भी खूब गरीबी का पाठ उन्हें पढ़ाया है।
मास्टर जी ने समझाया है, क्यों ना पहले ही घास काट के लाई जाए और दिन भर आपकी छगड़ी खाए।
पर हम भी कहाँ मानने वाले हैं,
छगड़ी को ताजी-ताजी ही घास खिलाने वाले हैं।
रोज सुबह से शाम के लिए टीम बनाकर निकल जाते हैं
और तो और जब खेल में साथी के साथ लग जाते हैं।
छगड़ी को भी खेल सूझता है, स्कूल की हरी-हरी घास
और पेड़-पौधों को देख उसका जी रीझता है।
न जाने कब वो विद्यालय में जाती है घुस,
मास्टर साहब की बागवानी की हसरत हो जाती है फुस।
सुंदर-सुंदर पौधों को वो खा जाती, मास्टर साहब मन मसोस के रह जाते हैं।
दौड़ता हुआ सब कुछ छोड़छाड़ के भाग जाता हूँ।
पर सच बताऊँ कितना भी तेज दौड़ें, पकड़ में न आता हूँ।
रचयिता
शुचिता शर्मा,
सहायक अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मदारपुर,
विकास खण्ड-परसेंडी,
जनपद-सीतापुर।
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