दबे पाँव फिर आयी सर्दी
पड़ने लगी है चाय में अदरक,
मूँगफली का सीजन आया,
चने चबाने लगे लोग हैं,
गज्जक और कड़ाका आया,
निकल गये हैं स्वेटर जैकेट,
निकल गई फिर गरम है वर्दी,
पता ही नहीं चल पाया कब,
दबे पाँव फिर आयी सर्दी।
शीत लहर से समां काँपता,
ज्यों-ज्यों दिन बढ़ते जाते हैं,
ठिठु-ठिठुर करता है अब तन
कपड़े बस बढ़ते जाते हैं,
सुन्न पड़ रहे हाथ ठण्ड से,
नाक की हालत पतली कर दी,
पता ही नहीं चल पाया कब,
दबे पाँव फिर आई सर्दी।
निकल गई हैं बड़ी रजाई,
हुई और भी मोटी स्वेटर,
एसी कोई चला रहा तो,
कोई चालू करता हीटर,
भाप मुँह से निकल रही है,
समय बड़ा ही है बेदर्दी,
पता ही नहीं चल पाया कब
दबे पाँव फिर आयी सर्दी।
रचयिता
नरेश चंद्र उनियाल,
सहायक अध्यापक,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घण्डियाली,
विकास क्षेत्र-थलीसैंण,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
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