भारत के रक्षक
भारत के रक्षकों की अभिलाषा
मैं एक देश का सिपाही हूँ
सपने देखता हूँ हर समय
एक नया भारत बनाने का इरादा है मन में
वह जहाँ सम्मान हर जाति हर धर्म का
सब समर्पित हों
जिसकी आँखों में एक चमक हो उल्लास हो
एक नया भारत में नया विश्वास हो
एक नया अभिमान देशवासियों के तन मन में हो
देश की सीमाओं की रक्षा तो कर रहे हैं हम
निर्धन गरीबों की रक्षा हो वे न कम
बारूद की गोद में बैठे हैं देश के रक्षक
छोड़ दे देश को भक्षक
एक नया गौरव अपने देश के कोने-कोने में हो
एक नया भारत बनाने का इरादा सबके मन में हो
भूख को जड़ से मिटा दे ऐसा पेड़ उगाना है तुम्हें
न्याय सबको दिला दे ऐसा कानून बनाना है तुम्हें
कोई बेटी अब ना मरे
ऐसे बेटियों को सम्मान दिलाना है तुम्हें
गोलियाँ हमारे सीने पर भले चलें
एक नया भारत बनाना है तुम्हें
नींद भूख त्याग कर हम खड़े हैं
पर क्या करें भ्रष्टाचार की देश में जड़ें हैं
इन जडों को उखाड़ फेंकना है तुम्हें
रचयिता
नन्दी बहुगुणा,
प्रधानाध्यापक,
रा० प्रा० वि० रामपुर,
विकास खण्ड-नरेन्द्रनगर,
जनपद-टेहरी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।
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