शिक्षा की फुलवारी

विद्यालय सूना-सा देख के भी

जब कुछ नहीं कर पाता है,

खुद को लाचार देख-देख

जी उसका छटपटाता है।


कक्षाओं के सूनेपन में भी

असहाय जहाँ हो जाता है,

ज्ञान किसे वो बाँटेगा

यही सोच शोक हो जाता है।


सज गए हज़ारों फिर कमरे

तरह तरह के टी.एल.एम से,

शिक्षक जी जान से लगे हुए

बेजान पड़े थे जो कमरे।


सँवारा जिनकी ही खातिर

वो देख कहाँ ये पाता है,

बिन बच्चों के सब क्रियाकलाप

सूना-सूना रह जाता है।


दुनिया सिमटी मोबाइल में

कहीं रीड अलोंग कहीं दीक्षा है

रेडियो टी.वी. दूरदर्शन से,

मिलती अब सबको शिक्षा है।


सब जतन किये बच्चों के लिए

खोजे नित नए योग प्रयोग,

लाखों प्रयोगों के बाद भी तो

संतोष कहाँ हो पाता है?


सब बीत जाएगा ये पल भी

लौटेगी फिर से वो रौनक,

महकेगा विद्या का आलय

नन्ही कलियों की बदौलत।


यही आस लिए सब करता है

भविष्य के लिए सब तैयारी,

नित नए प्रशिक्षण करता है

महकाने शिक्षा की फुलवारी।।


रचयिता
खुशबू गुप्ता,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय भदोई,
विकास खण्ड-सरोजनी नगर,
जनपद-लखनऊ।



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