परी

कक्षा - 2      
कलरव
पाठ  - 18 
परी

आओ बच्चों तुम्हें सुनाऊँ,
छोटी सी एक कहानी।
सुनाते होंगे तुमको जैसे,
तुम्हारे नाना नानी।

जाड़े का सुहाना दिन था,
और धूप खिली थी न्यारी।
आसमान में उड़ रही थी,
परी एक  बहुत ही प्यारी।

उड़ते-उड़ते परी ने,
पृथ्वी को गौर से देखा।
सुन्दर-सुन्दर फूल खिले थे,
रंग था जिनका चोखा।

छत्ता बनाती मधुमक्खी से,
बोली परी सयानी,
आओ हम दोनों मिलकर,
खेलें मधुमक्खी रानी।

मधुमक्खी बोली ना बाबा,
अभी बहुत है काम,
बर्फ गिरने से पहले मुझको,
निपटाना है छत्ते का काम।

परी बोली मधुमक्खी से,
सुन मेरी प्यारी बहना।
यदि जल्दी बनवा दूँ मैं छत्ता,
तो मत करना बहाना।

मधुमक्खी बोली हाँ बहना,
बन जाएगा यदि छत्ता मेरा।
जो बोलोगी तुम मुझसे,
मानूँगी कहना तेरा।

परी ने  फिर एक प्यारी सी
आवाज लगाई,
देखते ही देखते वहाँ,
हजारों मधुमक्खियाँ आयीं।

पल भर में बनाकर छत्ता,
शहद भी उसमें भर डाला।
अब खुशी से सारे मिलकर,
कर रहे थे झींगालाला।

रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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