हिंदी वर्णमाला के छत्तीस व्यंजन
क से कबूतर उड़ता जाए,
शांति का ये संदेश सुनाये।
ख से खरगोश दौड़ लगाये,
अपने चौड़े कान हिलाये।
ग से गधा बोझ को उठाये,
लोट-लोट के पीठ खुजाए।
घ से घड़ियाल नदी में आये,
बड़े चाव से मछली खाये।
ङ से कुछ न कहलाये,
दो अक्षर के मध्य ये आये।
च से चरखा बहुत चलाया,
गांधीजी ने अंग्रेज भगाया।
छ से छतरी लगा के आया,
वर्षा में मुन्ना भीग न पाया।
ज से जहाज किनारे आया,
पापा ने बंदरगाह दिखाया।
झ से झरना ने हमें लुभाया,
प्रकृति का संगीत सुनाया।
ञ से कुछ नहीं कहलाया,
दो अक्षर के मध्य ये आया।
ट से टमटम सड़क पे चलता,
रूक जाता जब सूरज ढलता।
ठ से ठठेरा साईकिल से आये,
पीट-पीट बर्तन वो बनाये।
ड से डमरू बजता डम-डम,
नाच रही बंदरिया छम-छम।
ढ से ढक्कन ढकता सामान,
खुला न खाना रखना ध्यान।
ण अक्षर से कुछ न कहलाये,
शब्दों के अंत व मध्य में आये।
त से तकली नाच-नाच कर,
हमको देती सूत कातकर।
थ से थन का दूध निकलता,
मुन्ना गट-गट उसे निगलता।
द से दवात देती न दिखाई,
जब से डाट पेन यह आई।
ध से धनुष जब तीर चलाता,
देख उसे दुश्मन डर जाता।
न से नल का जल है आता,
सब जीवों की प्यास बुझाता।
प से पतंग जब बँधी डोर से,
हवा चली तो उड़े जोर से।
फ से फल को भूल न जाना,
रखे निरोग इसे नित खाना।
ब से बकरी घास को चरती,
कभी-कभी वह मे-मे करती।
भ से भगत मंदिर को जाता,
ईश्वर को वह बहुत ही भाता।
म से मछली जल की रानी,
जीवन उसका होता पानी।
य से यज्ञ मुनियों ने कराया,
हवनकुंड विशाल बनाया।
र से रथ पर राजा है आता,
रण में अपने शत्रु हराता।
ल से लट्टू कील गड़ाकर,
नाचे मिट्टी में चिन्ह बनाकर।
व से होता वटवृक्ष विशाल,
यह जीता है सौ-सौ साल।
श से शरीफा गोल-मटोल,
मोटा होता है इसका खोल।
ष से हम षटकोण बनाते,
छह कोण इसमें हैं दिखाते।
स से सरौता से कटे सुपारी,
जब रखें बीच में बारी-बारी।
ह से हल अब दे न दिखाई,
ट्रैक्टर से होती है जुताई।
क्ष से क्षत्रिय होता है वीर,
युद्ध करे बनके रणधीर।
त्र से त्रिशूल हैं शंकर लेते,
प्राण दानवों के हर लेते।
ज्ञ से ज्ञानी ज्ञान की खान,
उससे पढ़कर बनो महान।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
शांति का ये संदेश सुनाये।
ख से खरगोश दौड़ लगाये,
अपने चौड़े कान हिलाये।
ग से गधा बोझ को उठाये,
लोट-लोट के पीठ खुजाए।
घ से घड़ियाल नदी में आये,
बड़े चाव से मछली खाये।
ङ से कुछ न कहलाये,
दो अक्षर के मध्य ये आये।
च से चरखा बहुत चलाया,
गांधीजी ने अंग्रेज भगाया।
छ से छतरी लगा के आया,
वर्षा में मुन्ना भीग न पाया।
ज से जहाज किनारे आया,
पापा ने बंदरगाह दिखाया।
झ से झरना ने हमें लुभाया,
प्रकृति का संगीत सुनाया।
ञ से कुछ नहीं कहलाया,
दो अक्षर के मध्य ये आया।
ट से टमटम सड़क पे चलता,
रूक जाता जब सूरज ढलता।
ठ से ठठेरा साईकिल से आये,
पीट-पीट बर्तन वो बनाये।
ड से डमरू बजता डम-डम,
नाच रही बंदरिया छम-छम।
ढ से ढक्कन ढकता सामान,
खुला न खाना रखना ध्यान।
ण अक्षर से कुछ न कहलाये,
शब्दों के अंत व मध्य में आये।
त से तकली नाच-नाच कर,
हमको देती सूत कातकर।
थ से थन का दूध निकलता,
मुन्ना गट-गट उसे निगलता।
द से दवात देती न दिखाई,
जब से डाट पेन यह आई।
ध से धनुष जब तीर चलाता,
देख उसे दुश्मन डर जाता।
न से नल का जल है आता,
सब जीवों की प्यास बुझाता।
प से पतंग जब बँधी डोर से,
हवा चली तो उड़े जोर से।
फ से फल को भूल न जाना,
रखे निरोग इसे नित खाना।
ब से बकरी घास को चरती,
कभी-कभी वह मे-मे करती।
भ से भगत मंदिर को जाता,
ईश्वर को वह बहुत ही भाता।
म से मछली जल की रानी,
जीवन उसका होता पानी।
य से यज्ञ मुनियों ने कराया,
हवनकुंड विशाल बनाया।
र से रथ पर राजा है आता,
रण में अपने शत्रु हराता।
ल से लट्टू कील गड़ाकर,
नाचे मिट्टी में चिन्ह बनाकर।
व से होता वटवृक्ष विशाल,
यह जीता है सौ-सौ साल।
श से शरीफा गोल-मटोल,
मोटा होता है इसका खोल।
ष से हम षटकोण बनाते,
छह कोण इसमें हैं दिखाते।
स से सरौता से कटे सुपारी,
जब रखें बीच में बारी-बारी।
ह से हल अब दे न दिखाई,
ट्रैक्टर से होती है जुताई।
क्ष से क्षत्रिय होता है वीर,
युद्ध करे बनके रणधीर।
त्र से त्रिशूल हैं शंकर लेते,
प्राण दानवों के हर लेते।
ज्ञ से ज्ञानी ज्ञान की खान,
उससे पढ़कर बनो महान।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
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