हिंदी वर्णमाला के तेरह स्वर
अ से होता मधुर अनार,
भीतर दाने लाल हजार।
आ से होता आम रसीला,
कच्चा हरा, पके तो पीला।
इ से इमली कहती नानी,
देखके मुँह में आता पानी।
ई से ईख रसभरी छड़ी है,
खेत बीच वह तनी खड़ी है।
उ से उल्लू रात में आता,
प्रातः होते ही छिप जाता।
ऊ से ऊँट कम पीता पानी,
है जहाज यह रेगिस्तानी।
ऋ से ऋषि है पूजा जाता,
ईश्वर को वह पुष्प चढ़ाता।
ए से एड़ी हमें उठाती,
पंजे के बल हमें चलाती।
ऐ से ऐनक आँख पे डाला,
आँखों का है यह रखवाला।
ओ से ओखली घर की शान।
मूसल से मइया कूटे धान।
औ से है औरत कहलाती,
बच्चों को वह सुबह जगाती।
अं से होता अंगूर का गुच्छा,
पक जाए तो लगता अच्छा।
अः से होता कुछ भी नहीं,
होते हैं स्वर तेरह यही।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
भीतर दाने लाल हजार।
आ से होता आम रसीला,
कच्चा हरा, पके तो पीला।
इ से इमली कहती नानी,
देखके मुँह में आता पानी।
ई से ईख रसभरी छड़ी है,
खेत बीच वह तनी खड़ी है।
उ से उल्लू रात में आता,
प्रातः होते ही छिप जाता।
ऊ से ऊँट कम पीता पानी,
है जहाज यह रेगिस्तानी।
ऋ से ऋषि है पूजा जाता,
ईश्वर को वह पुष्प चढ़ाता।
ए से एड़ी हमें उठाती,
पंजे के बल हमें चलाती।
ऐ से ऐनक आँख पे डाला,
आँखों का है यह रखवाला।
ओ से ओखली घर की शान।
मूसल से मइया कूटे धान।
औ से है औरत कहलाती,
बच्चों को वह सुबह जगाती।
अं से होता अंगूर का गुच्छा,
पक जाए तो लगता अच्छा।
अः से होता कुछ भी नहीं,
होते हैं स्वर तेरह यही।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
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