हे धरती माँ!

तुम हो जीवन का आधार,

करती हो अनगिनत उपकार।

असंख्य जीवों की आश्रय स्थली,

हो संपूर्ण जगत की पालनहार।।


निज सामर्थ्य से थाम सारा संसार,

 सहती हो धैर्यपूर्वक सबका भार।

दसों दिशाओं में फैला अद्भुत सौंदर्य,

मैदान, उपवन, नदियाँ, पर्वत, पठार।।


निज स्वार्थपूर्ति को मानव,

उजाड़ रहा धरती, बनकर दानव।

सौंदर्य छिन रहा, काट वन उपवन,

कल-कल बहती नदियों का कर दोहन।।


पृथ्वी दिवस पर लें यही संकल्प,

पर्यावरण संरक्षण एक मात्र विकल्प।

बाग-बगीचों से करें धरती का श्रृंगार,

जीवजगत को दें खुशहाली का उपहार।।


रचयिता

अमित गोयल,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय निवाड़ा,

विकास क्षेत्र व जनपद-बागपत।

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