जुल्म का क्रंदन

अप्रैल 13 सन् 19  को जुल्म का

ऐसा उठा धुआँ,

क्रंदन और उत्पीड़न से माँ का 

आंचल लाल हुआ।


आशाओं से भरे हृदय पर डायर ने आघात किया,

बूढ़े, बच्चों, महिलाओं की बगिया को बरबाद किया।


नरसंहारी दानव था वो मानवता का हत्यारा,

खून की नदियाँ बहा बाग की बलिवेदी को रंग डाला।


वक्त के निष्ठुर हाथों से घायल 

मानवता अब भी रोती है,

माँ बहनों के हृदय की ज्वाला 

अब भी रूह भिगोती है।


नयन अश्रुओं से वीर सपूतों का 

अभिसिंचन करती हूँ, 

करुणा के पुष्पों से वंदन और अभिनंदन करती हूँ।।


रचयिता

डॉ0 शालिनी गुप्ता,

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय मुर्धवा,

विकास खण्ड-म्योरपुर, 

जनपद-सोनभद्र।

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