मैं शिक्षक हूँ

जन मन के अन्तर्मन में,
मैं ज्ञान के दीप जलाता हूँ।
सुकुमार अवस्था मानव की,
उसमें उजियारा लाता हूँ।
अक्षर-अक्षर के चित्र बना,
उसमें भर ज्ञान विचार घना,
मन के भावों के उपवन में,
सुरभि नयी भरता जाता हूँ।
कोमल मन की जिज्ञासा का,
समाधान हर परिभाषा का।
अन्वेषण के नव आधारों का,
सिद्धांत सूत्र समझाता हूँ।
प्राची के महिमामय गौरव से,
महत ज्ञान के नव दर्शन से।
मानवता के भरने  संस्कार,
आदर्शों का बोध कराता हूँ।
जीवन की आवश्यकता से,
जीवन की प्रत्येक विधा से।
सह-सम्बंध बनेगा वह कैसे?
उस पथ की दिशा बताता हूँ।
राज व्यवस्था के आयामों से,
जनगण अभिमत के कामों से,
नेतृत्व कुशल हो कैसे फिर,
हर प्रेरक सूत्र सुझाता हूँ।
संस्कृति की लोक विधाओं से,
साहित्यिक सुखद कथाओं से।
भारत की माटी के गौरव का,
इतिहास सतत बतलाता हूँ।
शुचिता आचारों में भरने का,
बलिपथ पर भी बढ़ने का।
उत्सर्ग राष्ट्रहित में होने का।
हर प्रेरक दृष्टान्त सुनाता हूँ।
मैं शिक्षक हूँ जन जीवन का,
मैं रक्षक हूँ राष्ट्र अवनि का।
दायित्व बोध के आँचल पर,
स्वर्णिम भाव सजाता हूँ।
    मैं ज्ञान के दीप जलाता हूँ।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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