दृढ़ साधना

यूँ ही नहीं पहुँचते लोग 'शिखर' तक
ठोकर खाते हैं, रुकते हैं, चलते हैं पथ पर
फिर भी नहीं डिगते जो "लक्ष्य" से
वही पहुँचते हैं  'मंज़िल'  तक

धैर्य,  चेतना  साहस  जिनमें
कूट-कूट कर  भरा  हुआ
मुसीबतों  से  लड़कर जो
तूफ़ानों  में  खड़ा   हुआ,

वही पहुँच सकता है 'शिखर' तक
कभी  न  जिसके  पाँव  रूके
छुआ  आसमान  को  उसने
धरती  पर  जो  खड़ा  रहा,

कठिन साधना करके जो
उद्यम  से कभी डरा नहीं
पहुंच 'शिखर' पर अब वह मानव
देता है एक  "सीख"  नई !!

रचयिता
श्रीमती ममता जयंत,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चौड़ा सहादतपुर, 
विकास खण्ड-बिसरख, 
जनपद-गौतमबुद्धनगर।

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