एक फ़ौजी का पत्र

मैं तेरे सपनों का गीत नहीं बन पाऊँगा।
हे प्रिय मैं तेरे मन का मीत नहीं बन पाऊँगा।
मुझे तो भारत माँ की रक्षा का फर्ज निभाना है।
देश की मिट्टी और पानी का कर्ज चुकाना है।।
इसीलिए मैं हर दम तेरे साथ नहीं रह पाउँगा।
हे प्रिये मैं ..............।
पर अब मुझसे भी ज्यादा साहस तुम्हें दिखाना है।
मेरी सारी जिम्मेदारी अब तुमको ही उठाना है।।
क्योंकि जाते वक़्त तुम्हें मैं अपने कम सभी दे जाऊँगा।
हे प्रिये मैं.................।
मेरे बूढ़े मम्मी पापा का अब तुमको ही सहारा बनना है।
घर के सभी अभावों से तुमको ही अकेले लड़ना है।।
कठिन परिस्थितियों में तुम्हारा मैं साथ नहीं दे पाऊँगा।
हे प्रिये मैं.................।
बेटी को इतना पढ़ाना तुम
"अपने पैरों पर खड़ी हो जाए।"
बेटे को फ़ौजी बना देना मेरे जैसा देश के काम आये।।
बर्थडे और एनिवर्सरी में मैं शामिल नहीं हो पाऊँगा।
हे प्रिये मैं.................।
बच्चे जब तुम से पूछेंगे, मम्मी
पापा को कब आना है।
तुमको उनका मन बहलाने को
एक नया बहाना बनाना है।।

मैं अपनी सुंदर बगिया का
माली तुमको ही बनाऊँगा।
हे प्रिये मैं तेरे मन का मीत
नहीं बन पाऊँगा।
मैं तेरे सपनों का गीत नहीं
बन पाऊँगा।

रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

Comments

Total Pageviews