अर्ध सत्य

मंसूबों का दोष है इसमें नश्तर पर इल्ज़ाम न दो
बाँट रहे हैं वतन को जो उन सबको ईनाम न दो

पीठ-पीठ लटका है खंज़र, एक चूक भी काफी है
गुनहगार कमज़ोर है जो, ताकतवर को माफ़ी है

एक दिया उजाला हो, तो अमन चैन खिल जाता है
शक की छोटी चिंगारी से, शहर धुआँ हो जाता है

किसका घर आबाद हुआ, घर-घर आग लगाने से
जल कर वो भी राख हुआ, दिल में आग छुपाने से

गिरेबान को झाँके कौन, बस आइना लेकर चलते हैं
अर्धसत्य के बाज़ारों में, सच झूठ के मोल पे बिकते हैं

रचयिता
यशोदेव रॉय,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय नाउरदेउर,
विकास खण्ड-कौड़ीराम, 
जनपद-गोरखपुर।

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