हार नहीं मानूँगा

अब तक न विचलित हुआ कभी
अब भला क्यों पथ से डिगूँगा,
मौत भी आये सामने
गुनगुनाता ही रहूँगा।

सदा गाये गीत मैंने, अब कैसे मौन रहूँगा।
आवाज भले ही हो जाये मलिन
अपनी कविताओं से महफिलें दिलशाद रखूँगा ।

कमल बनकर खिला राजनीति के चमन में
अब तारा बन नभ की शान बनूँगा,
कल तक तो दिल ही था मैं सबका
अब धड़कन भी मैं ही बनूँगा।

लाख बुझा लो महफिले-शमा को तुम
मशाल बन पथ रोशन करता ही रहूँगा,
मानूँगा न हार कभी ....

अटल था, अटल हूँ, अटल ही रहूँगा ।
                                       
रचयिता
प्रीति सिंघल,
प्रधानध्यापक,
मॉडल प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर,
ब्लाक-जवां,
जनपद-अलीगढ़।

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