स्थानीय पेशे व व्यवसाय

दर्जी सिलता कपड़े सारे
पहन जिन्हें हम लगते प्यारे।

फर्नीचर बनाना मेरा काम
बढ़ई है जी मेरा नाम।

बनाऊँ मैं लोहे के औजार
प्यार से कहते सब मुझे लोहार।

सफ़ाईकर्मी झाड़ू लगाता
गंदगी को दूर भगाता।

मोची हमारे जूते बनाता
किसी भी राह पे चलना सिखाता।

राजगीर का काम बनाना घर
जहाँ रहने में न लगता डर।

किसान खेत में भोजन उगाता
दाल, चावल हमें खिलाता।

डॉक्टर हमारा इलाज़ है करता
हर रोग से हमें दूर है रखता।

कुम्हार बनाता घड़ा, सुराही
गर्मी में होती जिसकी वाह वाही।

ये सब हैं सहायक हमारे
इनसे ही होते काम हमारे।

रचयिता 
गीता यादव,
प्रधानाध्यपिका,
प्राथमिक विद्यालय मुरारपुर,
विकास खण्ड-देवमई,
जनपद-फ़तेहपुर।

Comments

  1. Kya baat hai mam .....
    रोचक कविता .....

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