मैं अपनी लय में गाता हूँ

जब कोई सुनता है,
जब कोई कहता है।
     मैं अपना गीत सुनाता हूँ।
        अपनी लय में गाता हूँ।
जीवन के जाने से, पहचाने से,
कुछ-कुछ अनजाने से।
चलते-चलते जीवन पथ पर,
अपनी लय में गाता हूँ।
मैं अपना गीत सुनाता हूँ।

मुरझाए सपनों के उपवन में,
हरियाली कोई लाता है।
उसका सारा देख समर्पण,
बादल भी घबराता है।
मन के मेघा जल बरसाते,
मैं सावन सा बन जाता हूँ।
      मैं अपनी लय में गाता हूँ।

मन के कोने एक किरण का,
झिलमिल बिन्दु दिखाता है।
अन्तर के नन्दन वन में,
प्रीति मधुर बिखराता है।
उस विरह मिलन की छाया में,
मैं तपती तपन मिटाता हूँ।
      ..मैं अपनी लय में गाता हूँ।
सुख-दुख कितने जीवन में,
निश्चित आते जाते हैं।
अन्तर की उपजी करूणा में,
संवेदना सहज हम पाते हैं।
संवेदना प्रेम का उद्गम है,
मैं जिसमें रोज नहाता हूँ।
     मैं अपनी लय में गाता हूँ।

कर्म भाग्य के लेखे पर हम,
कुछ लेखे लिखते जाते हैं।
निज की सम्मति लिए हुए,
फिर पग-पग बढ़ते जाते हैं।
प्रारब्ध दिशा निर्देशन में
मैं गतिमय चरण बढ़ाता हूँ।
     मैं अपनी लय में गाता हूँ।
सारे जग की अदभुत रचना,
रहस्य कुछ बतलाती है।
जड़ चेतन के स्पंदन में,
कैसी मोहकता दिखलाती है।
बिन्दु-बिन्दु की चेतनता में,
जिज्ञासा अपनी पाता हूँ।
     मैं अपनी लय में गाता हूँ।

ज्योति-ज्योति कण हैं उड़ते,
ज्योतित ज्योति झलकती है।
आत्मतत्व की ज्योति निरन्लर,
आलोकित मुझको करती है।
सारा जग आलोकित जिससे,
मैं शक्ति उसी से पाता हूँ।
     मैं अपनी लय में गाता हूँ।
    मैं अपना गीत सुनाता हूँ।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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