तू मुझको इतनी मजबूर नहीं लगती

    तू मुझको इतनी मजबूर नहीं लगती
माँ तू मुझको इतनी मजबूर नहीं लगती
मेरी हत्या में तेरी भी मौन स्वीकृति है झलकती।
क्या तू समाज में फैली हुई
बुराइयों से डरती है।
पर तुझे भी पता है कि कोई
बुराई हमेशा नहीं रहती है।
तू क्यों समाज से गंदगी मिटाने
की शुरुआत नहीं करती।
क्यों अपनी ताक़त और साहस का इजहार नहीं करती।
जब तेरा बेटा किसी की बेटी को
आहत करके आता है।
तू क्यों उस बेटे का
बहिष्कार नहीं करती।
क्यों छिपा लेती है उस दरिंदे
को अपने आँचल में।
किसी बेटी की करुण पुकार क्यों
तेरे मन को द्रवित नहीं करती?
माँ तू तो माँ है क्यों अपने नाम
के साथ न्याय नहीं करती?
क्यों अपने घर से बुराई
मिटाने की शुरुआत नहीं करती?
माँ तुझको ममता के दोहरे मापदंड से बाहर आना होगा।
तुझको ही साहस करके समाज से
अत्याचार मिटाना होगा।
       
रचयिता
जमीला खातून, 
प्रधानाध्यापक, 
बेसिक प्राथमिक पाठशाला गढधुरिया गंज,
नगर क्षेत्र मऊरानीपुर, 
जनपद-झाँसी।

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