एकता में बल
झुंड कबूतर का जा पहुँचा,
जहाँ बिछा था जाल।
लंबी यात्रा से थके बहुत थे,
भूख से सब बेहाल।
गेहूँ के दाने बिछे नजर जब,
वृद्ध कबूतर को आये।
कभी भूलकर नहीं उतरना,
सबको वह समझाए।
समझ गया वह इन दानों में,
है गहरी कोई चाल।
झुंड कबूतर का जा पहुँचा,
जहाँ बिछा था जाल।
बात न मानी उतर गए सब,
लालच ने जोर दिखाया।
एक-एक कर फँसे सभी वे,
और शिकारी आया।
आज एकता बन सकती है,
सोच रहे सब ढाल।
झुंड कबूतर का जा पहुँचा,
जहाँ बिछा था जाल।
जोर लगाया एक साथ फिर,
लेकर जाल उड़े सभी।
काला चूहा मित्र था उनका,
पड़ा दिखाई उन्हें तभी।
उतरे जाल सहित सब नीचे,
और बताया पूरा हाल।
झुंड कबूतर का जा पहुँचा,
जहाँ बिछा था जाल।
झटपट चूहे ने जाल काट के
मुक्त कर दिया उनको।
लालच बुरी बला होती यह,
ज्ञान नहीं था जिनको।
यह कविता है ज्ञान सिखाती,
बात बड़ों की मानो।
संकट में पड़ जाओ तुम तो,
अपनी शक्ति पहचानो।
और एकता के बल पर तुम,
संकट को सकते टाल।
झुंड कबूतर का जा पहुँचा,
जहाँ बिछा था जाल।
रचयिता
अरविन्द दुबे मनमौजी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अमारी,
विकास खण्ड-रानीपुर,
जनपद-मऊ।
Comments
Post a Comment