विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस

 चलो बनाएँ इस दुनिया को,

 सुंदर से सुंदरतम हम,

 साँसें अपनी बढ़ जाएँगी,

 वृक्ष एक रोपें जब हम।


 बैठे हैं जिस पेड़ के नीचे,

 छाया जिसकी सिर पर है,

 किसी पूर्वज की यह महिमा,

 हम जिसके आंचल पर हैं।


 कहते हैं भगवान हैं रहते,

 जिन पेड़ों के पत्तों पर,

 उन्हें काटते दया न आयी,

 क्षण भी हमारे हृदय तल में।


 बिगड़ गया वसुधा का संतुलन,

 पर्यावरण   प्रदूषण   से,

 रूप बदलने लगी वसुंधरा,

 मानव के नव कृत्यों  से।


 रोग दोष नित नए जन्मते,

 ओजोन परत क्षतिग्रस्त हुई,

 हुए नष्ट प्राकृतिक संसाधन,

 मानव की मति भ्रष्ट हुई।


 होश में आए आज भी यदि हम,

 कुछ सुधार कर सकते हैं,

 हरी-भरी इस अनुपम धरती का,

 साज श्रृंगार कर सकते हैं।


 इसी सोच को जन आंदोलन,

 मिलकर हमें बनाना  है,

 भावी संतानों के हित में,

 वृक्ष नए फिर लगाना है।


 उत्तरदायित्व समझ के अपना,

 स्वच्छ रखें धरती को हम,

 साँसें अपनी बढ़ जाएँगी,

 वृक्ष एक रोपें जब हम।

     

रचयिता
सीमा मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय काज़ीखेडा,
विकास खण्ड-खजुहा,
जनपद-फतेहपुर।



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