मन हो उजला

साथी सखियाँ जलाना फुलझड़ियाँ

आयी हैं झूमकर यह शुभ घड़ियाँ।


लागे सुघर सुंदर चौबारे ये गलियाँ

जलाओ सब मिल प्रेम का दिया।।


दिया जला मिटा दो मन का निशा

प्रेम भरा हिय हो  मिट जाये घृणा।।


सृजन सुख शांति  का  ही हो सदा

छल कपट न समझें मन हो उजला।।


हिय के वीण का तार से तार मिला 

उन्मादी झोंके से मधुरिम प्रेम सुना।। 


चहुँओर स्वाती प्रेम ही प्रेम हो फैला 

अपनेपन से  हो  सबका हृदय भरा।। 


रचयिता
स्वाती सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय रवांसी,
विकास खण्ड-परसेंडी,
जनपद-सीतापुर।



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