मिल जुलकर हम दीप जलाएँ

त्योहारों का मौसम आया है, 

धरती का हर कोना महकाएँ। 

ना रहे अंधेरा कहीं धरा पर, 

मिल जुलकर हम दीप जलाएँ। 


एक दीप हो दया का दिल में, 

जन-मानस में दया दिखाएँ। 

प्रकृति, जीव और वनस्पति में, 

सबसे अपनापन दिखलाएँ। 


एक दीप हो प्रेम का जिसमें, 

आपस में सब प्रेम जताएँ। 

राग-द्वेष को छोड़, भूलकर, 

भाईचारा हम सब निभाएँ। 


एक दीप हो देशभक्ति का, 

अपने कार्यों में निष्ठा दिखलाएँ। 

प्राण न्योछावर किये जिन्होंने, 

उनको भी हम भूल ना पाएँ। 


एक दीप, ज्ञान दीप कहलाये, 

शिक्षा की हम अलख जलाएँ। 

जहाँ लगे यह छूट रही है, 

उनके हाथ से हाथ मिलाएँ। 


एक दीप सम्मान का हो, 

रिश्तों में सम्मान दिखाएँ। 

बड़े-छोटों से जो भी रिश्ता, 

उनमें ना प्रपंच बिछाएँ। 


एक दीप संस्कारों का हो, 

इसको कोई भूल ना पाए। 

नारी का सम्मान करेंगे, 

अपने घर में यह पाठ पढ़ाएँ। 


एक दीप हो दिल में उनका, 

जिनके अपने छोड़ गए हैं। 

आसपास यदि कोई दिख जाए, 

सूनी आँखों में एक आस दिखाएँ। 


एक दीप हो उनके घर भी, 

जो अपने घर पहुँच ना पाए। 

परिवेश में अपने नजर दौडाएँ, 

उनकी देहरी को भी जगमगाएँ। 


रचयिता
बबली सेंजवाल,
प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय गैरसैंण,
विकास खण्ड-गैरसैंण 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।



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