चलो दीप जलाएँ

चलो सखी कुछ ऐसे दीप  जलाएँ।

हर घर  जो, उजियाला फैलाएँ

सूने  पड़े   द्वारों  को  सजाएँ

आते जाते राही को राह दिखाएँ।

           चलो सखी कुछ ऐसे दीप जलाएँ।


शिक्षा की  बाती  लगाएँ,

तप, साधना का तेल जलाएँ,

दीया भविष्य निर्माता को बनाएँ,

आओ ऐसा एक भाग्य  जगाएँ।

            चलो सखी कुछ ऐसे दीप  जलाएँ।


आंधी से न बुझ पाए जो,

कभी न खत्म हो जिसकी लौ।

हर  पल  दे  उजियाला जो,

चलो ऐसा कोई दीप बनाएँ।

            चलो सखी कुछ ऐसे दीप  जलाएँ। 

            

सूने पड़े घर  आँगन जिनके,

नई  आशाओं  से  महकाएँ,

माँ  के खाली  दामन  को,

नव स्वपनिल पुष्पों से सजाएँ।

             चलो सखी कुछ ऐसे दीप  जलाएँ।


कूड़ा  बीनते हाथों में,

एक कलम पकड़ाएँ।

कांधे  लटके थैलों में,

कुछ पुस्तक  सजाएँ।

             चलो सखी कुछ ऐसे दीप  जलाएँ।


कोठर  छुपे  जो  पंछी,

 चलो उन्हें मस्त अम्बर घुमाएँ।

 बेपरवाह घूमने वालों को,

 एक  सुंदर  सा घर बनाएँ।

        चलो सखी कुछ ऐसे दीप जलाएँ।

        चलो सखी कुछ ऐसे दीप जलाएँ,


रचयिता

सन्नू नेगी,

सहायक अध्यापक,
राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय सिदोली,
विकास खण्ड-कर्णप्रयाग, 
जनपद-चमोली,
उत्तराखण्ड।



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