17/2024, बाल कहानी- 07 फरवरी


बाल कहानी- स्वावलंबन

एक कस्बे में एक सामान्य परिवार निवास करता था। परिवार में पति हरिओम और पत्नी दुलारी और दो बेटे थे- बड़ा बेटा मुकेश और छोटा बेटा अमित। दोनों की स्कूल जाने की उम्र हो गयी थी। दोनों का नजदीकी विद्यालय में नाम लिखवा दिया गया। पिता गाँव गाँव जाकर कपड़े या अन्य मौसमी वस्तुएँ बेचते थे। 
माता-पिता कम पढ़े-लिखे थे। उनको बच्चों की पढ़ाई की बड़ी चिन्ता रहती थी कि हम तो नहीं पढ़ सके, बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करेंगे। इसी प्रयास में दोनों कड़ी मेहनत करते थे। 
पिता के मन में था कि बड़ा बेटा मुकेश वकील बने और छोटा बेटा अमित पुलिस में जाये। 
धीरे धीरे पढ़ाई आगे बढ़ी और बड़ा बेटा चाहता था कि वह खेलों में अपना भविष्य बनाये। खेलों में उसकी ज्यादा रुचि थी। 
छोटा बेटा अमित दसवीं पास होने के बाद ही पुलिस की तैयारी करने लगा और बारह पास होने के कुछ समय बाद वह पुलिस में भर्ती हो गया। 
बड़ा बेटा मुकेश बारवीं के बाद अपने पिता के बताये अनुसार पढ़ाई में लगा रहा, लेकिन वह पढ़ाई उसके मन मुताबिक नहीं थी। कोशिश करते-करते कुछ वर्ष बीत गये। सफलता कोसों दूर थी। 
उसके बाद पिता ने अपने पड़ोस में रहने बाले शिक्षाविद् से सलाह ली तो उन्होंने बताया कि मुकेश को जिस कार्य में रुचि है। उसे वह करने दो। उसके बाद पिता ने बेटे से कहा-, "मुकेश! अब तुम्हारी जिस कार्य में रुचि हो, उसी कार्य पर ध्यान लगायें।" 
कुछ ही सालों में मुकेश ने अलग-अलग खेलों में अपना नाम खूब आगे बढ़ाया और उसे भी सफलता प्राप्त हुई। 

संस्कार सन्देश-
रुचिकर कार्यों को करने से जल्दी और निश्चित सफलता मिलती है। बच्चों के ऊपर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिये।

✍️🧑‍🏫लेखक-
धर्मेन्द्र शर्मा (स०अ०)
कन्या० प्रा० वि० टोडी 
फतेहपुर, गुरसराय (झाँसी)

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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