29/2024, बाल कहानी- 22 फरवरी


बाल कहानी- शेर की उदारता
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एक जंगल में दो मोर रहते थे। उनकी आवाज बहुत ही सुरीली और नृत्य बहुत ही मनमोहक था। वे दोनों मोर राजा सिंह की सभा में रोज शाम को जाते और समस्त जानवरों की उपस्थिति में गायन और नृत्य करते। एक मोर गीत गाता और दूसरा मोर नृत्य करता। मेंढ़क तबले पर थाप देता और बन्दर मृदंग बजाता। गिलहरी सारंगी बजाती और लोमड़ी वीणा के तारों में रागिनी छेड़ती। इस प्रकार सभी जानवर और पक्षी देर रात तक गायन और नृत्य-संगीत का आनन्द लेते।
इस तरह वर्ष बीतते गये। जंगल के राजा शेर के यहाँ शेरनी ने युवराज को जन्म दिया। चारों ओर जंगल में मंगल हो गया। पूरा जंगल शादी के मण्डप की तरह सजा हुआ था। हर रोज की तरह आज भी जंगल में शेर के दरबार में गायन-नृत्य-संगीत का आयोजन चल रहा था। सभी रात-भर राजा शेर के यहाँ भोज तथा गीत-संगीत और नृत्य का भरपूर मजा लेते रहे और खुशियाँ मनाते रहे। 
जंगल की महारानी शेरनी भी राजा शेर के साथ दरबार में बैठी हुई गीत-संगीत और नृत्य में झूमती रही। उसे अपने सुकुमार, कोमल और नवजात बेटे का ध्यान ही नहीं आया। जब सभी को पुरस्कृत किया जा चुका और भेंटें दी जा चुकीं, तभी एकाएक उसे ध्यान आया कि मैं तो जाने कब से अपने बेटे को अकेली छोड़ आयी थी। किसी को बता भी नहीं आयी थी। वह तुरन्त भागी और वहाँ युवराज को न पाकर भयभीत और आशंकित हो गयी। उसने आकर सभी में शेर को सारी बात बतायी। सिंह ने सभी को रुकने के लिए कहा और मन्त्री चीते से पूछा कि-, "आज सभा में कौन नहीं आया है? मुझे इसकी जानकारी दी जाये।"
चीते ने जब पता लगाया तो मालूम हुआ कि आज गीदड़ थोड़ी देर के बाद चारों ओर घूमकर चला गया था और फिर नहीं आया। राजा ने गीदड़ को पकड़कर लाने को कहा। गीदड़ के आने पर शेर ने उसे उल्टा टाँग दिया और पूछा कि-, "युवराज कहाँ है?" गीदड़ घबरा गया और रोने लगा। शेर ने कहा कि-, "इसके शरीर से गर्म सलाखें दाग दी जायें। युवराज को तो मैं ढूँढ़ लूँगा।" गीदड़ तुरन्त बोला कि-, "युवराज को पडोसी जंगल का राजा ले गया और इस कार्य में मैंने उसकी मदद की थी।"
"लेकिन क्यों?"
"क्योंकि एक बार आपने मेरे पुत्र को पीटने की सजा दी थी, जबकि उसकी उतनी बड़ी गलती नहीं थी।" गीदड़ की बात सुनकर शेर ने उसे पेड़ से नीचे उतरवाया और कहा कि-, "मैं मानता हूँ कि मैंने आपके पुत्र को सजा दी थी, लेकिन मैं क्या करता, उसके पक्ष में कोई सबूत नहीं था, इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा।"
"तो मजबूरी में आप किसी को भी मार देंगे?"
"खैर, जो हो गया, सो हो गया। अब हम भविष्य में इसका ध्यान रखेंगे। अब हमें ये सोचना है कि हमारा पुत्र कैसे वापस आ जाये?"
"उसकी चिन्ता आप मत कीजिए! आपका पुत्र मेरे अधीन है। उसे मैं लेकर आऊँगा।" यह कहकर गीदड़ तुरन्त तेज गति से गया। सभी आश्चर्यचकित हुए। अगले ही पल गीदड़ युवराज को लिए आ गया। गीदड़ के इस कार्य पर सभी ने तालियाँ बतायीं। गीदड़ ने कहा कि-, "देख लीजिए राजन्! ये आपका पुत्र सकुशल है। इसे कोई भी पडोसी जंगल का राजा नहीं ले गया था। मैं केवल ये चाहता था कि आपको भी पुत्र की पीड़ा का अनुभव हो, ताकि भविष्य में दूसरे के पुत्र आपको अपने समान दिखाई दें।"
राजा ने पुत्र को देखा, जो शेरनी की गोद में सकुशल था। राजा ने गीदड़ को और उसके पुत्र को अभयदान दिया तथा अपना सलाहकार नियुक्त किया। गीदड़ अपने-आप को बहुत सौभाग्यशाली समझ रहा था। सभी जानवर और पक्षी उसके भाग्य और राजा की उदारता की सराहना करते हुए तालियाँ बजा रहे थे।

संस्कार सन्देश-
हमें कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे हमारा परिवार संकट में आ जाये।

✍️🧑‍🏫लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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