15/2024, बाल कहानी- 05 फरवरी


बाल कहानी- आलस बुरी बीमारी

फूलपुर गांँव के लोग बहुत आलसी थे। वे अपने दिन इधर-उधर घूमने, झगड़ने, सोने और शिकायत करने में बिताते थे।
एक बार गाँव में भयंकर सूखा पड़ा। फसलें सूख गयीं। कुएंँ सूख गये। ग्रामीणों के सामने भुखमरी का खतरा पैदा हो गया। मेहनती किसान और मजदूर तुरन्त काम करने में जुट गये। उन्होंने नये कुएँ खोदे। अपने खेतों की सिंचाई की और गांँव के बाहर जाकर खाने-पीने की तलाश की, लेकिन आलसी लोगों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
वे छाया में लेटे रहते और खाने के आखिरी भण्डार को खाकर जीवन गुजारते रहे। खाली बैठकर ईश्वर को कोसते रहे कि जीवन कितना कठिन है! वे अपने साथी ग्रामीणों के प्रयासों की खिल्ली उड़ाते और यही सोचा करते कि उनकी ओर से बिना किसी प्रयास के अन्त में सब कुछ ठीक हो जायेगा।
दिन बीतते गये। स्थिति और विकट होती गयी। मुट्ठी भर मेहनती ग्रामीणों के इतने प्रयासों के बावजूद चारों ओर खाने के लिए पर्याप्त भोजन और पानी नहीं बचा था। शीघ्र ही आलसी लोगों को उनकी अकर्मण्यता का कुप्रभाव महसूस होने लगा। वे कमजोर और बीमार हो गये। स्वयं के लिए या समाज में योगदान करने में असमर्थ थे। जैसे-जैसे स्थिति बिगड़ती गयी, उन्हें अपनी गलतियों का एहसास हुआ, पर अब बहुत देर हो चुकी थी।
आखिरकार, कुछ दिनों बाद सूखे का खतरा टल गया और गांँव में जीवन फिर से लौट आया।मेहनती किसान अपने नि:स्वार्थ प्रयासों के लिए नायक के रूप में सम्मानित किये गये। आलसी लोगों की समझ में अब बात चुकी थी कि केवल बातों से नहीं, काम करने व कोशिश करने से परिस्थितियांँ बदली जा सकती हैं।

संस्कार सन्देश-
आलस बुरी आदत है। कड़ी मेहनत और परिश्रम से स्वयं की व आस-पास के लोगों की भी भलाई होती है।

✍️👩‍🏫लेखिका-
शिखा वर्मा (इं०प्र०अ०)
उ० प्रा० वि० स्योढ़ा
बिसवाँ (सीतापुर)

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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