महाकवि सुब्रम्हाण्य भारती

विधा- दोहा छन्द


सुब्रम्हाण्य कवि भारती, थे अद्भुत इंसान।

जन्मदिवस शुभ आज है, करो सभी सम्मान।।


भरतियार के नाम से, जाने सभी जहान।

देश प्रेम की कृति रची, पाया जग में मान।।


 देशभक्त कवि थे बडे़, पडा़ भारती नाम।

जन-जन के उर में बसे, करते लोग प्रणाम।।


जन्म हुआ शुभ आपका, एट्टिपुरम था ग्राम।

निधन हुआ माँ-तात का, मिला नही आराम।।   


एकादश की आयु में, पाया कवि का मंच।

मिली बडा़ई बहु इन्हें, बने कवि के पंच।।


चले गये वाराणसी, रहे बुआ के धाम।

राष्ट्रवाद आधात्म का, मिला ज्ञान साकाम।।


आन्दोलन में भारती, किये बड़ा प्रतिभाग।

फैली थी चहुँओर से, आजादी की आग।।


हिन्दी बंगाली कई, भाषाओं का ज्ञान।

पकड़ बड़ी मजबूत थी, लिखे लेखनी गान।।


पत्र पत्रिका का किया, संपादन हर बार।

कविताएँ निज गीत का, रचा अतुल भंडार।।


वन्दे मातरम गीत का, किया तमिल अनुवाद।

घर-घर में गूँजी हँसी, मन में छाया साद।।


रहे जेल में कुछ दिनों, आये भारत देश।

स्वास्थ्य शिथिल जब हो गया, बदला सारा वेश।।


कम उम्र में चल बसे, कवि थे बहुत महान।

मान लेखनी को मिले, पाठक दो वरदान।।


रचयिता

गीता देवी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,

विकास खण्ड- बिधूना, 

जनपद- औरैया।



Comments

Total Pageviews