अनमोल

लेना न जान कभी अपनी,

है जान बड़ी अनमोल।

दुनिया की सारी दौलत भी,

चुका सके न इसका मोल।


पद, प्रतिष्ठा, धन और दौलत,

फिर से हमको मिल जाएगी।

गई जान जो तन से हमारे,

कभी न वापस आएगी।


चिंता होती चिता हमारी,

चिंता से नाता तोड़ो।

चिंतन करो सदा अपने में,

विपदाओं से मुख न मोड़ो।


करो सामना डट कष्टों से,

न मानो कभी भी हार।

होना न लाचार कभी,

चाहें पड़े कोई भी मार।


जो डर गया वो मर गया,

समझो इतनी सी बात।

संकटों से आँख मिला,

करो उनसे खुल कर बात।


दुखों के बादल छँट जाएँगे,

खुशियों के मौसम आएँगे।

खोया था जो अब तक हमने,

फिर से वापस पाएँगे।


जिसने जीवन दिया है हमको,

सदा उसको गले लगाओ।

दूर न भागो फ़र्ज़ से अपने,

जिम्मेदारियों का बोझ उठाओ।


दीप जलाओ आशा के,

मन में विश्वास जगाओ।

भय, कुंठा, ईर्ष्या-द्वेष को,

तुम झट से मार भगाओ।


रचनाकार

सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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