चाह मेरी

शिक्षक हूँ, सिखाना चाहती हूँ

  विद्यालय रुपी इस बगिया को

नित निखारना चाहती हूँ।

इन फूलों की महक को मैं

दूर -दूर फैलाना चाहती हूँ

हर बच्चा आगे बढे़

बस यही चाह मैं रखती हूँ

छिपी हुई उनकी प्रतिभा को

मैं तराशना चाहती हूँ

मैं शिक्षक हूँ बस सिखाना चाहती हूँ।

जिस पथ में रखें वो कदम

कभी ना मुड़कर पीछे देखें

राह में आए जो मुश्किल

कुचल उसे आगे बढ़ें

उनके अरमानों को मैं 

पंख लगते देखना चाहती हूँ

मैं शिक्षक हूँ बस सिखाना चाहती हूँ।

हर मुश्किल को पार करें,

पूरा अपना हर अरमान करें

डरें न किसी भी बाधा से

ना हों कभी भी हताश 

सफलता की मंजिल पायें

बस यही अरमान मैं रखती हूँ।

हमारी बगिया से निकल कर

जाएँ जिस भी पथ पर

नाम अपना रौशन कर पायें

हाँ यही चाह मैं रखती हूँ

मैं शिक्षक हूँ बस सिखाना चाहती हूँ।।


रचयिता
दीपा कर्नाटक,
प्रभारी प्रधानाध्यापिका,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय छतौला,
विकास खण्ड-रामगढ़,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।



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