सन्त शिरोमणि श्री रविदास

माघ पूर्णिमा तिथि जो जानो, 

जन्मदिवस रविदास का मानो। 

सीर गोवर्धनपुर था गाँव, 

ब्रजभाषा सा ना कोई सुहानो।।


संतोख दास करमा बाई, 

मात-पिता गुरुवर थे तिहारे। 

लघु बड़ेन को भेद नहीं, 

जग ऐसा रैदास निहारे।।


चर्मकार पैतृक व्यवसाय, 

नि:संकोच था अपनाया। 

अंधविश्वास को ठुकराकर, 

सत्कर्मों का प्रण उठाया।।


अपनायी निर्गुण धारा, 

ध्येय समाज सुधार रहा। 

आध्यात्म का दे सन्देश, 

जात-पात का विरोध किया।।


ऊँच-नीच ना जाति से होवे, 

रहता सदा ही कर्म प्रधान। 

मीराबाई थी अनुयायी, 

रामानन्द थे गुरु महान।।


त्याग, समर्पण और सेवा का,

रग-रग में था इनके वास। 

मन चंगा तो कठौती में गंगा,

कहते थे सन्त रविदास।।


गुरुवर तुमको करें प्रणाम, 

समरसता के परिचायक। 

महान ज्ञानी, योगी परम, 

सद्भाव के तुम नायक।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।

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