छत्रपति शिवाजी महाराज

महान राजा एवं रणनीतिकार,

मराठा साम्राज्य को दिया आकार।

19 फरवरी 1630 चमका एक सितारा,

युद्ध शैली विकसित की छापामार।।


दरबारी शिष्टाचार किए पुनर्जीवित,

मराठी एवं संस्कृत की करी वकालत।

पहला दुर्ग रोहिदेश्वर पर किया अधिकार,

समर विद्या में नवाचार किए विकसित।।


शिवाजी से पहले किया कई राजाओं ने राज,

आदिलशाह के किले पर दादाजी कोंडदेव का राज।

यहीं बनाई थी आदिल शाह ने अपनी छावनी,

यहीं से संपन्न किए थे सारे राजकाज।।


शिवाजी ने किया इस किले पर अधिकार,

पिता की मुक्ति हेतु वापसी से ना किया इंकार।

कोंडोना समेत 22 किले दुखी होकर लौटाए,

अंत में किले पर पुनः कब्जे का किया विचार।।


कई सरदार शिवाजी पर जान लुटाने को थे तैयार,

मगर शिवाजी को न था उन पर ऐतबार।

तानाजी मालुसरे का नाम उनको फिर भाया,

थे उनके बचपन के दोस्त और खास सरदार।।


कई युद्ध में उन्होंने शिवाजी का हौंसला बढ़ाया,

बेटी रायबा की शादी को भी था भुलाया।

आन बान और शान बन गया था यह किला,

4 फरवरी 1672 तानाजी ने आक्रमण किया।।


किला जीता लेकिन खोया एक सपूत महान,

शिवाजी महाराज भी थे दुख से हलकान।

"गढ़ आया पर सिंह गया" यह थे उनके शब्द,

सिंह गढ़ रखा किले का नाम, दिया तानाजी को सम्मान।।


1674 में रायगढ़ में हुआ राज्य अभिषेक,

छत्रपति कहलाए बनाई इकाइयाँ प्रशासनिक।

योग्य प्रगतिशील प्रशासन उन्होंने बनाया,

3 अप्रैल 1680 रायगढ़ में सिधारे परलोक।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,

प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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