बसंत ऋतु

हरियाली धरती हर्षाई, पीली -पीली सरसों फूली,

 ऋतु बसन्त की   प्यारी, कोयल बागों में कूकी।

पीले-पीले गेंदा फूले, पीली पीली सरसों फूली।

बेरी फिर बेरों से लद गयी, आलू- गोभी महकी।


चना, मटरा,  मैथी, धनिया, फिर से  खेतों में महके।

 रंगीन खिले फूलों पर, तितली मधुर -मधुर  है चहके।

कठोर शरद दिन बीते, खुसियों से बसन्त महके।

 फूल - फूल मुस्कान खिली, जीवन फिर से चहके।


तोता मैना चहक उठे, चील फिर ऊँची उड़ान भरे।

महक अनोखी लिये पवन, प्रकति नव निर्माण  करे।

नीली -पीली उड़ी पतंगें, बाजी फिर  आओ हम जीतें। 

ऋतुराज बंसत है आया, आओ खुशियों का वरण करें।


रचनाकार

दीपमाला शाक्य दीप,

शिक्षामित्र,
प्राथमिक विद्यालय कल्यानपुर,
विकास खण्ड-छिबरामऊ,
जनपद-कन्नौज।



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