माँ ब्रह्मचारिणी नमन

माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरूप का हो दर्शन,

ब्रह्मचारिणी रुप माँ का लागे अतिभावन।

तप का आचरण करने वाली माँ को नमन,

नाम में ही समाहित शक्ति महिमा का वर्णन।।


तप, त्याग, संयम, सदाचार की होवे वृद्धि,

कर्तव्य पथ से विचलित न होने की सिद्धि।

ऊर्जा, कार्य कुशलता की प्रदाता मेरी मैया,

चर-अचर जगत की विद्याओं की मैया करें वृद्धि।।


श्वेत वस्त्र धारिणी अष्टदल माला है साजे,

द्वितीय हस्ते मैया के कमंडल राजे।

सादा और भव्य रुप धारण करें मैया,

अति सौम्य, क्रोधरहित वरदायिनी माँ विराजे।।


तप की देवी इनको माने जग सारा,

कठिन तप के बाद ब्रह्मचारिणी नाम धारा।

निराहार व्रत करके महादेव को प्रसन्न किया,

माता पार्वती को फिर पत्नी रूप में स्वीकारा।।


तप से असीम शक्ति मैया ने पाई,

भक्तों पर कृपा सदा ही बनाई।

सुख शांति समृद्धि का वास रहे हमेशा,

ज्योति रूप में दिव्य अलौकिक प्रकाश है लाईं।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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