प्रथम शैलपुत्री नमन

दो ऋतुओं की संधि काल का नौ दिवसीय पर्व,

अश्विन माह के शुक्ल पक्ष का महापर्व।

मानव की आंतरिक ऊर्जा के पहलू का प्रतिनिधित्व,

यही मान्यताएँ नौ देवियों की संज्ञा का बताएँ पर्व।।


प्रथम दिन माँ शैलपुत्री को पूजते,

हिमालय की पुत्री इनको हैं कहते।

यह स्वरूप मनोवांछित फल प्रदान प्रदाता,

भक्तों की मनोकामना पूर्ण बताता।।


माँ का त्रिशूल धर्म, अर्थ, मोक्ष दाता,

मनुष्य के मूलाधार चक्र पर सक्रिय बल प्रदाता।

पूर्व जन्म के समस्त कर्म संचित इसमें रहते,

कर्म सिद्धांत पर चक्र प्राणी का प्रारब्ध बताता।।


नंदी बैल पर शैलपुत्री विराजे,

त्रिशूल, कमल हाथ उनके साजे।

मनुष्य में प्रभु शक्ति का संकेत शैलपुत्री,

 यही शक्ति जागृत करने माँ विराजे।।


ब्रह्मांड का प्रथम संपर्क सूत्र माता,

जो कोई इनको सच्चे मन से ध्याता।

अंतर्मन में उमंग, आनंद व्याप्त हो जाता,

मस्तिष्क में नई ऊर्जा का संचार होता।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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