चतुर्थ रूप माँ कुष्मांडा

चतुर्थ स्वरूप माँ कुष्मांडा की शोभा अनुपम,

अष्टभुजा धारिणी माता को मेरा नमन।

सूर्य समान कांति मेरी मैया की सुहाए,

कमंडल, धनुष, बाण, कलश सोहे अप्रतिम।।


अंधकार में प्रकाश की लौ मैया ने जलाई,

अपने तेज से मैया ने दिशाएँ चमकाईं।

यही सृष्टि की आदि स्वरूपा माँ कहलाए,

भोग में मैया का प्रिय मालपुआ चढ़ाई।।


आयु, यश, बल, ऐश्वर्य की मैया प्रदाता,

मंद हँसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करें माता।

ब्रह्मांड को उत्पन्न किया तो कुष्मांडा नाम धारा,

सिंह की सवारी करें मेरी कुष्मांडा माता।।


सिद्धि, निधि को देने वाली जपमाला है धारण,

संस्कृत में कुष्मांडा कहलाता है कुम्हड़।

बलियों में कुम्हड़े की बलि इनको भाती,

रोग, शोक मिटाने को मैया आए तेरी शरण।।


सहज भाव से मैया भवसागर पार कराती,

सच्चे मन से ध्यावे को मैया का वंदन कराती।

सुखसागर उन्नति की ओर हो हमारा गमन,

कृपा करो मैया हम पर दया दृष्टि बरसाती।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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