शुभंकरी माँ कालरात्रि नमन

सप्तम दिन की करूँ मैं प्रार्थना,

 शुमंकरी माँ दया बरसाना।।

शुभफल करणी तुम्हें प्रणाम,

भव बाधा अब दूर भगाना।।


अंधकार सम श्याम वर्ण काया,

श्वांस से अपने अग्नि वर्षाया।

विद्युत जस गलमाला चमके,

आसुरिक शक्तियों का विनाश बताया।।


त्रिनेत्र जैसे ब्रह्मांड गोल विशाल,

किरणें प्रस्फुटित मानों कांति चपल।

चार हाथ खड्ग लौह अस्त्र मुद्रा धारण,

कालरात्रि माँ का रूप करे निहाल।।


परिश्रमी निर्भय गर्दभ इनका वाहन,

अधिष्ठात्री देवी के साथ करें विचरण।

रिद्धि सिद्धि का लिया अवतार,

सिद्धियों की देवी इन्हें  कहे पुराण।।


क्रोध पर विजय साधना से प्राप्त,

काली के रूप की उपमा है व्याप्त।

पार्वती देवी से इनकी उत्पत्ति,

मन मुराद पूरी कृपा जगत व्याप्त।।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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