अभिप्रेरणा : एक भावात्मक आतुरता


       भिषेक चतुर्थ कक्षा का छात्र है। जनवरी माह में जब वह तृतीय कक्षा का छात्र हुआ करता था, एक दिन उसे प्रार्थना-स्थल पर इसलिए खड़ा किया गया कि वह उस दिन नहाकर नहीं आया था। साथ ही साथ उसके कपड़े गंदे तथा नाखून-बाल बढ़े हुए थे। इस बात के लिए उसे अपने शिक्षकों का स्वच्छता आधारित लम्बा व्याख्यान सुनना पड़ा था। वह अगले दिन स्कूल आया, बिलकुल बदला हुआ था। उसके बाल तथा नाखून कटे हुए थे और कपड़ा धुला हुआ था। उस दिन विद्यालय के प्रधानाध्यापक द्वारा अभिषेक को दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया गया। प्रधानाध्यापक ने उसे प्रार्थना-स्थल पर सबसे आगे बुलाया तथा उसमें हुए सुधार को बताते हुए उसकी ख़ूब प्रशंसा की तथा सबको ऐसा करने के लिए कहा। फिर क्या था! अभिषेक प्रतिदिन साफ-सफाई का ध्यान रखने लगा। आज वह सफाई के मामले में विद्यालय का आइकाॅन तथा बाल स्वच्छता प्रभारी है।

      यह मामला केवल अभिषेक से जुड़ा हुआ नहीं है। हमारे सरकारी विद्यालयों में अधिकांश बच्चों की यही कहानी है। वे साफ-सफाई, अध्ययन व अपने कार्य-व्यवहार को लेकर जागरूक नहीं हैं। मेरा पूर्ण विश्वास है कि बच्चों से सम्बन्धित इस समस्या का समाधान अभिप्रेरणा के माध्यम से किया जा सकता है।

      अभिप्रेरणा का अर्थ है- किसी कार्य को करने के लिए प्रोत्साहित होना। अभिप्रेरणा एक ऐसी मनोशारीरिक प्रक्रिया है जो किसी व्यक्ति के अन्दर ऐसी ऊर्जा पैदा करती है जिससे वह कार्यविशेष करने के लिए प्रोत्साहित होता है। इस प्रक्रिया में भावात्मक और क्रियात्मक पहलुओं का एक अनूठा संयोग होता है; पहले व्यक्ति भावात्मक रूप से आतुर होता है, फिर यह आतुरता ऊर्जा का रूप धारण कर उसमें उमंग व उत्साह भरती है। फलस्वरूप वह कार्य विशेष को करने हेतु प्रेरित हो जाता है। 

      पूर्णरूपेण अभिप्रेरित व्यक्ति उद्देश्य की प्राप्ति के बाद ही शांत होता है। अतः शिक्षण-अधिगम के दौरान बच्चों की अभिप्रेरणा पर ध्यान दिया जाना चाहिए। विद्यार्थियों का विद्यालय में आना इस बात का द्योतक है कि वे सीखने के लिए अभिप्रेरित हैं; पर कितने अधिक अथवा कम, यह दूसरी बात है। हम जानते हैं कि सीखना मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है। हो सकता है कि कुछ बच्चे अपनी इस प्रकृति की संतुष्टि के लिए विद्यालय आते हों। मनुष्य में सामूहिकता की मूल प्रवृत्ति होती है, हो सकता है कुछ बच्चे इसकी संतुष्टि के लिए विद्यालय आते हों। यह भी हो सकता है कि कुछ बच्चे मित्रों की संगत के लोभ से विद्यालय आते हो। कुछ बच्चे खेल-कूद सुविधाओं के कारण भी विद्यालय आ सकते हैं और कुछ बच्चों के लिए शिक्षित व्यक्तियों का जीवन स्तर उच्च होना उनकी अभिप्रेरणा का आधार हो सकता है। बच्चों को सीखने के लिए अभिप्रेरित करने हेतु आवश्यक प्रयास करना चाहिए।

      उपयोगिता सबसे अधिक शक्तिशाली अभिप्रेरक होता है। यदि बच्चों को यह बता दिया जाए कि पढ़ाया जाने वाला विषय उनके जीवन के लिए कितना उपयोगी है तो जितना अधिक उन्हें उसकी उपयोगिता का आभास होगा, वे सीखने के लिए उतने ही अधिक अभिप्रेरित होंगे। अभिप्रेरणा बढ़ाने का यह भी एक अच्छा तरीका है कि सिखाए जाने वाले ज्ञान का सम्बन्ध बच्चों की आवश्यकताओं से जोड़ा जाए। 

     कुछ विद्यार्थी केवल उत्तीर्ण होने भर की आकांक्षा रखते हैं, कुछ द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण होने की और कुछ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने की। इसी प्रकार कुछ बच्चे छोटे-मोटे व्यवसाय को प्राप्त करने की आकांक्षा रखते हैं, कुछ की आकांक्षाएँ इससे अधिक होती हैं और कुछ की आकांक्षाएँ तो आसमान को छूती हैं। यह देखा गया है कि जिन बच्चों का आकांक्षा-स्तर जितना अधिक ऊँचा होता है वे तत्सम्बन्धी ज्ञान अथवा कौशल सीखने के लिए उतने अधिक अभिप्रेरित होते हैं। साफ जाहिर है कि ब्च्चों का आकांक्षा-स्तर उठाकर हम उनकी अभिप्रेरणा को उठा सकते हैं।

       शिक्षक का बच्चों के प्रति आत्मभाव एक अचूक रामबाण होता है। यह बात जिले के उत्कृष्ट शिक्षक-शिक्षिकाओं द्वारा भी  'विद्यालयों के बदलाव की कहानी' बताते हुए डीएम साहब के समक्ष प्रस्तुत की गयी। शिक्षक अपने प्रेम, सहानुभूति एवं सहयोगपूर्ण व्यवहार से बच्चों की अभिप्रेरणा को सरलता से बढ़ा सकता है। यह कार्य छात्रों की भावनाओं का सम्मान करके, उन्हें अभिव्यक्ति के स्वतंत्र अवसर प्रदान करके और उनकी समस्याओं का तुरन्त हल करके किया जा सकता है।

      इसके अतिरिक्त सुन्दर कक्ष, शुद्ध हवा, पर्याप्त प्रकाश, शान्त वातावरण, शिक्षक-शिक्षार्थियों के बीच सम्बन्ध, उपयुक्ततम शिक्षण विधियों के उचित प्रयोग तथा प्रशंसा-पुरस्कार-प्रतियोगिता के द्वारा भी बच्चों की अभिप्रेरणा में अभिवृद्धि की जा सकती है।

लेखक
अशोक गुप्त 'नवीन'
(स0अ0/प्रभारी प्रधानाध्यापक)
प्रा0 वि0 टड़वा रामबर
विकास क्षेत्र- रामकोला
जनपद- कुशीनगर।
मो. न. 9919504476


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