शिक्षक

शिक्षक बनकर काट ली, अपनी उम्र तमाम।

स्वाभाविक है  कृत्य  में, शिक्षण के आयाम।।

शिक्षण  के  आयाम, सभी को अपना मानूँ।

दल  कोई  हो  शिष्य, वहाँ  अपने  हैं  जानूँ।।

"सर्वे  सुखिनः भाव, निरापद" गुण का रक्षक-

बनो! सदा संदेश, प्रसारित करता शिक्षक।।


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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